श्रीमुरारी गुप्त जी के माध्यम से भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु जी ने इष्टनिष्ठा की शिक्षा प्रदान की तथा वे भी बताया कि आराध्यदेव में निष्ठा के बिना प्रेम बढ़ता नहीं। हनुमान जी के अवतार मुरारीगुप्त जी महाप्रभु जी का राम रूप से दर्शन करते थे। आपकी इष्ट निष्ठा की परीक्षा लेने के लिये श्रीमहाप्रभु जी ने आपसे कहा - 'सर्वाश्रय, सर्वांशी, स्वयं भगवान्, अखिल रसामृत मूर्ति - व्रजेन्द्रनन्दन श्री कृष्ण के भजन में जो आनन्द है, भगवान के अन्य स्वरूपों की आराधना में वह आनन्द नहीं है।' श्रीमुरारीगुप्त श्रीमहाप्रभु जी को कृष्ण-भजन करने का वचन देने पर भी घर में आकर यह सोचकर कि भगवान श्रीरघुनाथ जी के पादपद्मों को त्याग करना होगा, अस्थिर हो उठे। सारी रात जाग कर ही बिता देने पर, दूसरे दिन प्रातः महाप्रभु जी के पादपद्मों में निवेदन करते हुये बोले -'मैंने अपने इस मस्तक को श्रीरघुनाथ जी के चरणों में बेच दिया है। परन्तु अब मैं पुनः वहाँ से इस सिर को नहीं उठा सकता हूँ। अब इस दुविधा में मैं दुःख पा रहा हूँ कि श्रीरघुनाथ जी के चरण मुझसे छोड़े नहीं जाते। किन्तु यदि नहीं छोड़ता तो आपकी आज्ञा भंग होती है। कुछ समझ में नहीं आता, क्या करूँ ? आप दयामय हैं, मेरे ऊपर ऐसी कृपा करो कि आपके सामने ही मेरी मृत्यु हो जाये, तब यह संशय समाप्त हो जायेगा।'
बुधवार, 21 अप्रैल 2021
श्रीहनुमान जी जब भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभुजी की लीला में आये
आपकी भगवान के प्रसाद के प्रति अटूट निष्ठा थी
दुनियावी दृष्टि से आपके अन्दर संसार के प्रति वैराग्य व भगवान के नाम, भगवान के धाम व भगवान के भक्तों तथा यहाँ तक कि भगवान के प्रसाद के प्रति इतना अनुराग था कि यदि कोई भक्त आपको भगवान केए प्रसाद देता तो आप 'ना' नहीं बोलते थे। आपकी धारणा ये थी कि प्रसाद तो भगवान की कृपा होती है।

गुरुवार, 8 अप्रैल 2021
संसार में सबसे सुखी कौन?
महाभारत में एक प्रसंग आता है, कि एक बार पाँच पाण्डव वन में भटक गये। भटकते-भटकते उन्हें प्यास लगी। ज्यादा थकावट के कारण सभी एक स्थान पर बैठ गये।

रविवार, 28 मार्च 2021
समाज़ में एकता लाने के लिये श्रीचैतन्य महाप्रभुजी का अवदान
वर्तमान समय में जितने भी समाज, धर्म, मत, विचार, इत्यादि प्रचलित हैं, सभी एक ही बात कहते हैं कि भगवान एक हैं, हम सब उनके बच्चे हैं और हमें उनकी सेवा-आराधना करनी चाहिये। यह सिद्धान्त एक होने पर भी हम देखते हैं कि अधिकतर लोगों का आपस में मतभेद है। इसका कारण यह है कि कहने को तो सभी, उपरोक्त शिक्षा का ही प्रचार करते हैं, किन्तु न तो इस शिक्षा को मानते हैं और न ही जीवन में ढालते हैं। इसी कारण से सारा समाज जातिवाद, धर्मवाद, देशवाद, भाषावाद में बंटा है। हर कोई अपने को एक-दूसरे से श्रेष्ठ साबित करने में जुटा है।

गुरुवार, 25 मार्च 2021
भगवान ने जब आप के लिये खीर चुराई
एक बार श्रील माधवेन्द्र पुरीपाद जी अपने सेवित विग्रह श्रीगोवर्धनधारी गोपाल के लिए चन्दन लेने के लिये पूर्व देश की ओर गये।