प्रेम लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
प्रेम लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

सोमवार, 12 मार्च 2012

कृष्ण भावनामृत : प्रेम और सौंदर्य


द्वारा: श्रील बी.र.श्रीधर महाराज 

२०वीं सदी की शुरुआत में एक बंगाली कवि हेमचन्द्र ने लिखा, "अनेकों देशों की प्रख्याति उभर रही है: जापान एक बहुत छोटा देश है किन्तु वह सूर्य की तरह उदित हो रहा है और भारत ही केवलमात्र ऐसा देश है जो निरंतर सो रहा है |" जब हेमचन्द्र ने संसार के अन्य देशों के बारे में उल्लेख किया तो उसने कहा, "अमरीका सशक्त रूप से शक्तिशाली बन रहा है जैसे बहुत जल्द ही वह समस्त पृथ्वी का नाश कर देगा, कभी वह युद्ध के लिए ललकारता है तो सारा संसार काँप उठता है, उसका उत्साह इतना अधिक है मानो जैसे वह सौर मंडल से पृथ्वी को छीनकर एक नया रूप और आकार देना चाहता हो |" इस प्रकार हेमचन्द्र द्वारा अमरीका का उल्लेख किया गया | इसी प्रकार, श्रील भक्तिवेदांत स्वामी महाराज इस धरातल पर कृष्ण भावनामृत द्वारा जगत को एक नया रूप देने के लिए अवतीर्ण हुए | उन्होंने एक बार कहा, "हमें वहां जाना चाहिए और उन देशों को कृष्ण भावनामृत द्वारा नए तरीके से बनाना चाहिए |" 

कृष्ण भावनामृत का अर्थ क्या है ? कृष्ण भावनामृत का अर्थ है वास्तविक प्रेम और सौंदर्य | वास्तविक प्रेम और सौंदर्य की अवश्य ही प्रधानता होनी चाहिए न की स्वार्थ और शोषण की | साधारणतः जब भी हम किसी सुन्दर वस्तु को देखते हैं तो हमारी यह भावना होती है की उसका शोषण किया जाए किन्तु सौंदर्य तो स्वयं शोषक है, स्वामी है और सबका नियंत्रण करने वाला है | 

प्रेम क्या है ? प्रेम का अर्थ है दूसरों के लिए त्याग | हमें यह नहीं सोचना चाहिए की हमारे द्वारा किए गये समर्पण का शोषण किया जाए | इस त्याग को कौन प्राप्त करेगा ? क्या हमारे सहायक लोग इस त्याग को प्राप्त करेंगे ? नहीं, हम उन लोगों की गोष्ठी में हैं जो स्वयं अपना त्याग करते हैं : महाभाव गोष्ठी | प्रेम का मूल तत्व है समर्पण किन्तु किसके लिए समर्पण ? किसको इस त्याग द्वारा लाभ होगा ? प्रेम ही हित्ताधिकारी है | सभी को उस प्रेम प्राप्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए और अपने स्वार्थ हेतु कार्य नहीं करना चाहिए | "उस नित्य जगत में प्रवेश करने के लिए इस अनित्य जगत से हमें जाना है" - इस प्रकार की भावना रखते हुए हम सभी को एकत्रित होकर वास्तविक प्रेम प्राप्ति के लिए कार्य करना चाहिए |

ऐसा करने से ही प्रेम और सौंदर्य की सम्पूर्ण जगत में विजय होगी | हम इस अप्राकृत प्रेम के प्रचार के लिए अपना सब कुछ त्याग करेंगे क्योंकि इस दिव्य प्रेम का कण मात्र ही सभी दिशाओं में शांति बनाए रखने के लिए सक्षम है | जिस प्रकार युद्ध  करते समय सैनिक अपना सब कुछ अपने देशवासियों की रक्षा के लिए समर्पित करते हैं उसी प्रकार हमें भी अपने प्राण देकर सभी के लिए वास्तविक शांति लाने का प्रयत्न करना चाहिए | 

श्री कृष्ण के धाम वृन्दावन में समर्पण का स्तर असीमित है, गोपियों ने कृष्ण के लिए सब कुछ समर्पित कर दिया | यदि त्याग के उसी स्तर को कायम रखा जाए तो स्वत: ही शांति का प्रचार होगा |

हमें सभी प्रकार की धारणाओं से श्रेष्ठ कृष्ण भावनामृत को रखना चाहिए | श्री कृष्ण का 'वृन्दावन' धाम सर्वोत्तम है | श्री चैतन्य महाप्रभु जी की लीला अन्य सभी विचारों से श्रेष्ठ है | इसलिए महाप्रभु ने जो शिक्षा प्रदान की हमें उन शिक्षाओं की व्याख्या करनी चाहिए, उन पर विचार करना चाहिए और उन्हें ग्रहण कर उनका प्रचार करना चाहिए |

गुरुवार, 25 अगस्त 2011

प्रेम का अर्थ है उपासना

प्रेम का अर्थ है उपासना
(द्वारा: परमपूज्यपाद ॐ विष्णुपाद 108 श्रीश्रीमद्भक्तियालोक परमाद्वैति महाराज ) 
 
 
हम सभी में कहीं ना कहीं प्रेम करने की इच्छा होती है। हम सभी में एक अन्य इच्छा भी होती है कि हम स्वामी बनें। चूँकि हममें दोनों इच्छायें विराजमान रहती हैं, अतः काम नहीं बनता। क्योंकि अगर आप किसी से प्रेम करना चाहते हैं तो आपको अपने को उससे नीचे स्थित करना होगा। अन्यथा प्रेम का कोई अर्थ नहीं है। प्रेम का एक अर्थ है 'देना' व प्रेम का एक अर्थ उपासना भी है। आप उस व्यक्ति से प्रेम नहीं कर सकते अगर आप के मन में उसके लिये कुछ सम्मान ना हो अथवा आप उससे कुछ प्रभावित ना हों। अतः अगर आप यह सोचें कि मैं उससे प्रेम करता हूँ किन्तु वह मेरे अधीन है तो यह मान्य नहीं होगा। प्रेम इतना महान है कि महानतम भी उसके आगे बौना हो जाता है। यह कैसे सम्भव है? प्रेम के अद्भुत व्यापार से।
 
उदहारण के लिये, प्रधानमन्त्री का सहायक उससे मिलने जाता है किसी विशेष कार्य हेतु। द्वारपाल को सूचित करने पर उसे उत्तर मिलता है कि प्रधानमन्त्री जी अभी किसी को नहीं मिल सकते। सहायक के यह कहने पर की कार्य अति आवश्यक है तो भी वह द्वारपाल उसे कक्ष के भीतर जाने नहीं देता। अतः क्रुद्ध होकर सहायक द्वार को जोर से धक्का दे देता है। भीतर प्रविष्ट होने पर वह देखता है कि प्रधानमन्त्री घोड़ा बने हैं व उनका पौत्र उनकी स्वारी कर रहा है व कह रहा है, 'भाग घोड़े, भाग !'
 
एक विशाल देश का प्रधानमन्त्री अपने पौत्र के लिये घोड़ा बन गया है।
 
क्यों ? उत्तर है प्रेम । प्रेम आपको तुच्छ बनना सिखाता है। जिससे आप प्रेम करते हैं उसके लिये आप कुछ भी करने को त्यार रहते हैं। अगर कोई व्यक्ति अपना स्वमित्व जताता है तो वह प्रेम नहीं करता है। ऐसे व्यक्तियों के लिये प्रेम के द्वार हमेशा बन्द रहते हैं।