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सोमवार, 17 अक्टूबर 2011

गौड़ीय आचार्य - भास्कर परमपूज्यपाद नित्यलीलाप्रविष्ट ॐ विष्णुपाद श्री श्रीमदभक्ति सिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी ठाकुर प्रभुपाद जी ने अपनी अप्रकट लीला से कुछ दिन पूर्व अर्थात २७ दिसम्बर को प्रातः काल में अपने सब प्रिय शिष्यों को निम्नलिखित उपदेश दिया था -

'मैने बहुत लोगों को उद्वेग दिया है | निष्कपट सत्यकथा कहने को मैं बाध्य हुआ हूँ और निष्कपट हरिभजन करने को कहा है | संभवत: इसी कारण बहुत से लोगों ने मुझे अपना शत्रु समझा है | अन्य अभिलाषा और कपटता को छोड़कर निष्कपट श्रीकृष्ण की सेवा में उन्मुख होने के लिए ही मैंने बहुत से  लोगो को नाना प्रकार उद्वेग दिया है | आशा है , इन सब बातों को वो लोग किसी न किसी दिन समझ सकेंगे |'
जगद्गुरु परपपूज्यपाद श्रील भक्ति सिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी ठाकुर प्रभुपाद जी

'सभी लोग श्रीरूप-रघुनाथ की वाणी का प्रचार बड़े उत्साह के साथ करें | श्री रुपानुगगणों की पादपद्मो की धूलि होना ही हमारी चरम आकांक्षा की वस्तु है | आप सभी लोग अप्राकृत इन्द्रियतृप्ति के उद्देश्य से आश्रय- विग्रह के अनुगात्य में मिलजुल कर रहें | सभी लोग इस अनित्य संसार मे किसी प्रकार जीवन निर्वाह करते हुये भगवान की पूजा को प्राथमिकता दें |  सैकड़ो विपतियाँ , सैकड़ो तिरस्कार और लान्न्छ्नों में भी हरिभजन नहीं छोड़े | जगत में अधिकतर लोग ,निष्कपट कृष्ण सेवा की बात को ग्रहण नहीं कर रहे हैं , ऐसा देखकर निरुत्साहित नहीं होवें |'