भारत के हिन्दी दैनिक समाचार पत्र नवभारत टाइम्स ने यह लेख 9/8/2011 (पवित्रारोपणी एकादशी तिथि के दिन) 'The Speaking Tree' में प्रकाशित किया:
शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान
(द्वारा: श्रील भक्ति विचार विष्णु महाराज (श्री चैतन्य गौड़ीय मठ))
एक बार एक सज्जन मुझे अपनी आप-बीती सुना रहे थे। वे बताने लगे कि उन्हें एक बार अचानक कहीं जाना पड़ा, अतः उन्होंने अपने मित्र से उसकी गाड़ी माँग ली । जब वे यात्रा पर चल पड़े तो मार्ग में उन्होंने एक अच्छे पेट्रोल-पम्प पर गाड़ी रोकी व पेट्रोल डलवा दिया। कुछ दूर जाकर गाड़ी रुक गयी। वे घबरा गये व अपने मित्र को फोन किया। मित्र ने कहा किसी को दिखा लो। बहुत ढूँढने पर एक मकैनिक मिला। कुछ देर निरीक्षण करने के उपरान्त उसने कहा कि यह गाड़ी उसकी दुकान पर ले जानी होगी। तीन-चार व्यक्तियों से प्रार्थना करने पर, सभी गाड़ी को धकेल कर दुकान तक ले गये। वे सज्जन मन ही मन सोच रहे थे कि ऐसे ही गाड़ी का झंझट मोल लिया। कुछ समय उपरान्त मकैनिक बोला, 'साहब ! इसकी टंकी खोलनी पड़ेगी ।' इन्होंने पूछा, 'क्यों?' मकैनिक बोला, 'साहब ! इस गाड़ी में डीजल डाला जाता है परन्तु किसी ने इसमें पेट्रोल डाल दिया है ।'
यह चर्चा हास्य-विनोद की लगती है, किन्तु अपनी सरलता अथवा अज्ञानता के कारण हमें कई कष्ट झेलने पड़ते हैं ।
उपरोक्त घटना के कारण उक्त महाशय को कुछ कष्ट अवश्य उठाना पड़ा किन्तु वह कष्ट उनको कुछ समय के लिये उठाना पड़ा । किन्तु अपने जीवन काल में हम ऐसी विकट स्थिती में फंस जाते हैं कई बार, कि उस समय के गलत निर्णय के कारण, जो हमने उचित ज्ञान के अभाव में लिया, हमें कई जन्मों तक उसके कारण कष्ट उठाना पड़ता है।
हमारे जीवन में सद्गुरु की बहुत आवश्यकता होती है। हमें हर पग पर शिक्षा चाहिये। शास्त्रों के अनुसार गुरु हमें अंधेरे से प्रकाश की ओर ले जाता है । गुरु ही हमारे जन्म-मृत्यु के आवागमन को स्माप्त कर सकता है। अतः हमें गुरु उपयुक्त पात्र को ही स्वीकर करना चाहिये। अनजाने में अगर हम गलत गुरु के हत्थे चड़ गये तो हमारा परलोक तो क्या सुधरेगा, इहलोक भी बिगड़ जायेगा। अतः सावधान !