श्रीकृष्ण दोस्तों के साथ वृज में माखन, दही चुराते तो गोपियाँ प्रसन्न होतीं किन्तु कभी-कभी नाराज़ भी हो जातीं। जब शिकायतें बहुत अधिक आने लगीं तो यशोदा मैया ने एक दिन पूछ ही लिया- कोई उपाय बताओ ताकि ये पकड़ा जाये, फिर मैं इसे देखती हूँ।
गोपियों ने कहा- इसकी कमर पर घंटी बाँध दो। जब ये चलेगा तो घंटी बजती रहेगी, हमें इसके आने की खबर लग जायेगी।
मैया यशोदा ने एक दिन नन्दनन्दन श्रीकृष्ण की कमर पर घंटी बाँध दी।
कन्हैया- मैया! ये क्या कर रही हो? इसे क्यों बाँध रही हो, ये गर्मी में मुझे बहुत जलायेगी1
मैया- कुछ नहीं होगा। ये बजती रहेगी, तो मुझे पता रहेगा कि तू कहाँ पर है? मुझे चिन्ता नहीं रहेगी।
मैया की आज्ञा, श्रीकृष्ण ने मान ली।
स्थिति ऐसी बन गई कि श्रीकृष्ण जब चलते, घंटी बजती। दोस्तों के साथ किसी गोपी के घर की ओर जाते, तो भी घंटी बजती। गोपियाँ इससे सचेत हो जातीं और अपन दही, माखन बचाने के लिए खड़ी हो जातीं। धीरे-धीरे श्रीकृष्ण व उनके सखाओं के लिए माखन-दही का अकाल पड़ने लगा। माखन चुराना मुश्किल हो गया।
एक दिन दोस्तों ने कहा- कन्हैया, इस घंटी को उतार। इसने बहुत गड़बड़ कर रखी है।
कन्हैया- कैसे उतार दूँ? मैया ने बाँधी है। उतारूँगा तो मैया को दुःख होगा।
सखा- फिर, क्या उपाय है इसका?
कन्हैया- मैं इसको पकड़ लेता हूँ। जब पकड़ लूँगा तो ये बजेगी नहीं।
सखा- हाँ, ये ठीक है।
अगले दिन सभी दोस्तों के साथ कन्हैया, घर से निकले, चुपके से, घंटी को पकड़ा और दोस्तों के साथ एक गोपी के घर में घुस गये।
कन्हैया ने घंटी से कहा- देख, बजना नहीं, तुझे भी माखन खिलाऊँगा।
माखन की, ऊपर टंगी मटकी को देख बालक, झुण्ड बनाकर खड़े हुए, उनके ऊपर कुछ बालक चढ़े और उनके ऊपर कुछ, फिर सबसे ऊपर चढ़े श्रीकृष्ण।……घंटी नहीं बजी।
श्रीकृष्ण को लगा कि मेरी बात मान रही है।
उन्होंने एक माखन के मटके में हाथ डाला, माखन निकाला और कुछ देर रुके। घंटी नहीं बजी। फिर दोस्त के मुख में माखन डाला तो भी घंटी नहीं बजी। आश्वस्त हो गये श्रीकृष्ण और उनके दोस्त।
धीरे-धीरे सारा माखन, दोस्तों को खिलाने लगे, बन्दरों को खिलाने लगे………घंटी नहीं बजी। सभी खुश कि किसी को पता भी नहीं चल रहा और हम माखन खा रहे हैं।
सबको माखन खाते देख, श्रीकृष्ण का भी मन ललचाया। क्योंकि घंटी बजी नहीं थी अब तक, वे भी निश्चिन्त थे कि बजेगी नहीं ये। अपनी ऊँगली से थोड़ा सा माखन उठाया और अपने मुख में रख लिया।
………………घंटी बज उठी………।
सभी अवाक्।
सभी स्थिर हो गये, हाथ जहाँ थे, वहीं रुक गये, कि ये क्या हो गया/ ये घंटी क्यों बज उठी……सभी भागे।
उधर गोपी ने भी घंटी सुन ली। उसे पता लग गया कि कन्हैया आया है। वो भी भागी कमरे की ओर।
सभी दोस्त तो भाग गये किन्तु कन्हैया पकड़े गये।
गोपी ने कहा कि चल तुझे अब मैं तेरी माँ पास लेकर चलती हूँ ताकि उसे भी पता लगे कि उसका लाला क्या करता है/ तेरे तो मुख में इस समय माखन भी है।
कन्हैया- अच्छा माँ! ठीक है। लेकिन मैं एक मिनट ज़रा घंटी से कुछ पूछ लूँ।
कन्हैया ने घंटी से पूछा- मैंने कितना कुछ दोस्तों को खिलाया, बन्दरों को खिलाया, तू नहीं बजी। मैंने ज़रा सा माखन क्या मुख में रखा, तू बजने लगी? मैंने बजने से मना किया था ना।
घंटी- आपका आदेश तो सिर-आँखों पर। किन्तु आपका आदेश शास्त्रों में भी है कि जब भी आपको भोग लगता है, घंटी बजती है। घंटी के बिना भोग ही नहीं लगता। जब आप खाने लगे तो मुझे बजना पड़ा। आपकी बात मैं कैसे झूठ कर सकती थी?
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