शनिवार, 25 मार्च 2023

जब श्रीनन्द लाल पहली बार गोशाला में गये।

एक दिन नन्हें कृष्ण, श्रीनन्द जी के पास आये व बोले- बाबा! बाबा! मैं भी दूध दुहुँगा। ये देखो, मेरे पास लोटा भी है।

श्रीनन्द राय जी हँस पड़े व बोले- अभी तो तू छोटा है, दूध तो बड़े दुहते हैं

बालकृष्ण- पर मैया तो कहती है कि तू बड़ा हो गया है?

श्रीनन्द राय जी हँस पड़े व बोले- चल, तेरी मैया से ही पूछ लेते हैं 

श्रीकृष्ण जानते हैं कि उनके माता-पिता का उनके प्रति इतना ज्यादा वात्सल्य है कि उनके लिए वे हमेशा छोटे से बच्चे ही रहेंगे, अतः जल्दी से मानेंगे नहींलेकिन यह भी जानते हैं कि उनके शान्त रस के भक्त जैसे गाय, बछड़े, बैल आदि को भी आनन्द देना है, वे भी मेरे दर्शनों की लालसा में यहाँ पर आये हुए हैं

इसलिए एक दिन चुप-चाप छुपते-छुपाते अपनी सोने की लुटिका (छोटा सा लोटा उठाये), नन्हें कृष्ण पहुँच गये गोशाला में

श्रीनन्द राय जी व अन्य गोप गाय का दूध दुह रहे थे।

श्रीकृष्ण ने जैसे ही गोशाला में प्रवेश किया, सारी गाय अचानक स्थिर हो गयीं सबका ध्यान गोशाला के द्वार की ओर था। श्रीनन्द राय जी ने अनुभव किया कि सारी गाय, एकदम शान्त हो गयी हैं, सबका ध्यान एक ही ओर है। वे समझ गये कि मेरा लाला गोशाला में आ गया है।

खड़े हुए और देखा कि वो सामने से उनका लाला चोरी-चोरी, धीरे-धीरे चला आ रहा है। ऐसा धीरे कि पायल की आवाज़ भी न हो।

सारी गाय श्रीकृष्ण के पास जाने के लिए लालायित हो उठीं

श्रीकृष्ण ने गायों को चंचल सा देखा तो शीघ्रता से उनके पास जा पहुँचे। उन्हें पुचकारने लगे, हाथों से सहलाने लगे आदि।

तभी एक चमत्कार हुआ, श्रीकृष्ण के दर्शन, स्पर्श से गौवें इतनी हर्षित हो गईं थीं कि उनके थनों से दूध अपने आप ही बहने लगा।

इतना हर्ष था गौवों को कि बिना दुहे ही दूध बह रहा था।

उस दिन इतना दूध बहा, इतना दूध झरा कि दोपहर तक गोप मिलकर दूध इकट्ठा करते रहे किन्तु दूध सिमट न सका।

श्रीनन्द राय जी भी देख रहे थे कि क्या हो रहा है?



मंगलवार, 7 मार्च 2023

भक्त कब भगवान को देख पाता है?

श्रीचैतन्य महाप्रभु जी ने दीक्षा के बारे में कहा -  

दीक्षा काले भक्त करे आत्म-समर्पण………

अर्थात् दीक्षा के समय, भक्त आत्म-समर्पण करता है। अपने आप को भगवान के प्रिय, जो गुरू जी हैं, उनके चरणों में समर्पण कर देता है।

…………… सेई काले, कृष्ण करे तारे आत्मसम……।

अर्थात् भगवान उस समय उसको अपना मान लेते हैं

वैसे तो संसार में अरबों_खरबों प्राणी हैं (मनुष्य, पशु, पक्षी, कीट, आदि)……इनमें से भगवान  किसको अपना मानते हैं? ..........................जो, उनके भक्त के चरणों में आत्म-समर्पित हो जाता, उसे भगवान अपने परिवार का सदस्य मान लेते हैं

इसलिए जब दीक्षा होती है, तो उससे पहले चाहे कोई भी गोत्र हो, वो बदल जाता है। दीक्षा के बाद गोत्र हो जाता है - 'अच्युत' अथवा 'कृष्ण'।

दीक्षा का अर्थ होता है - दिव्य ज्ञान।

अर्थात् मैं श्रीकृष्ण जी के दासों के दासों का दास हूँ इसे ही दिव्य ज्ञान कहते हैं 

जब व्यक्ति इस बात में प्रतिष्ठित हो जाता है, तब श्रीकृष्ण उसे अपना मान लेते हैं

उस समय भगवान श्रीकृष्ण उसके शरीर को दिव्य बना देते हैं, फिर वो भक्त अप्राकृत शरीर से अप्राकृत श्रीकृष्ण का भजन करने लगता है।

जब तक हमारी इन्द्रियाँ दिव्य नहीं होंगी, तब तक हमारा भजन नहीं होगा। भगवान श्रीकृष्ण बंसी बजायेंगे, मुझे सुनाई ही नहीं देगा क्योंकि मेरे कान दिव्य ध्वनि सुन ही नहीं सकते। 

मैं भगवान के आगे खड़ा हूँ, भगवान मुझसे कुछ बोलेंगे भी, तो भी मुझे पता नहीं चलेगा क्योंकि मेरी आँखें, मेरे कान सब दुनियावी हैं भगवान तो कण-कण में हैं, मुझे दिखाई ही नहीं  देते हैं

किन्तु भगवान जब उस भक्त के शरीर को दिव्य बना देते हैं, तब ही वो भगवान को देख पाता है, उनकी बात सुन पाता है,………।