शनिवार, 29 अप्रैल 2023

भजन में आगे बढ़ने के लिए………

 हमारे मठ में एक बुजुर्ग थे। पंजाब से थे।

उनकी बड़ी सी मूंछ थी। वे सिर के बाल साफ करवाते थे किन्तु मूंछे साफ नहीं करते थे। कभी उनसे पूछो कि बाबा, मूंछे साफ क्यों नहीं करते तो वो कहते मैं कोई लड़की हूँ जो मूछें कटाऊँ?

मूछें मरोड़ते हुए कहते- मैं राजपूत हूँ,  मूंछे नहीं कटाऊँगा।

यहाँ पर विचार करने वाली बात यह है कि मैं राजपूत हूँ, मैं बाह्मण हूँ, मैं फलां जाति का हूँ आदि ………जब तक इस भूमिका से हम ऊपर नहीं उठेंगे, तब तक हम लोग भक्ति में आगे नहीं बढ़ सकते।

बुधवार, 26 अप्रैल 2023

हरिनाम क्यों करें?

हरिनाम की बहुत महिमा है। 

आप चाहे कोई भी हों, आप धार्मिक हैं अथवा अधार्मिक हैं, आप चाहे पुण्यवान हैं या पापी हैं, ये भगवद् नाम इतना प्रभावशाली है कि ये भगवान के दर्शन करा देता है।

श्रील जीव गोस्वामी जी बताते हैं कि हरिनाम निरन्तर करते रहने से…………नाम का दिव्य स्वरूप हृदय में प्रकाशित हो जायेगा। उस स्थिती में नाम अपने आप ही होने लगेगा। 

फिर भगवान का रूप हृदय में स्फुरित होगा, फिर भगवान के गुण स्फुरित होंगे, फिर परिकर, फिर भगवान का धाम स्फुरित होगा और फिर भगवान की लीलायें स्फुरित होंगी।

हरिनाम का अंतिम लक्ष्य है कि हमारे हृदय में भगवान की लीलायें प्रकाशित हों हम भगवान की लीलाओं का आनन्द लेते रहें 

और जिन लीलाओं का दर्शन करते हुए हम शरीर त्यागते हैं, हमें भगवद् धाम में उन्हीं लीलाओं में प्रवेश मिलता है।


रविवार, 23 अप्रैल 2023

और घंटी बज उठी।

श्रीकृष्ण दोस्तों के साथ वृज में माखन, दही चुराते तो गोपियाँ प्रसन्न होतीं किन्तु कभी-कभी नाराज़ भी हो जातीं जब शिकायतें बहुत अधिक आने लगीं तो यशोदा मैया ने एक दिन पूछ ही लिया- कोई उपाय बताओ ताकि ये पकड़ा जाये, फिर मैं इसे देखती हूँ

गोपियों ने कहा- इसकी कमर पर घंटी बाँध दो। जब ये चलेगा तो घंटी बजती रहेगी, हमें इसके आने की खबर लग जायेगी।

मैया यशोदा ने  एक दिन नन्दनन्दन श्रीकृष्ण की कमर पर घंटी बाँध दी।

कन्हैया- मैया! ये क्या कर रही हो? इसे क्यों बाँध रही हो, ये गर्मी में मुझे बहुत जलायेगी1

मैया- कुछ नहीं होगा। ये बजती रहेगी, तो मुझे पता रहेगा कि तू कहाँ पर है? मुझे चिन्ता नहीं रहेगी।

मैया की आज्ञा, श्रीकृष्ण ने मान ली।

स्थिति ऐसी बन गई कि श्रीकृष्ण जब चलते, घंटी बजती। दोस्तों के साथ किसी गोपी के घर की ओर जाते, तो भी घंटी बजती। गोपियाँ इससे सचेत हो जातीं और अपन दही, माखन बचाने के लिए खड़ी हो जातीं धीरे-धीरे श्रीकृष्ण व उनके सखाओं के लिए माखन-दही का अकाल पड़ने लगा। माखन चुराना मुश्किल हो गया।

एक दिन दोस्तों ने कहा- कन्हैया, इस घंटी को उतार। इसने बहुत गड़बड़ कर रखी है।

कन्हैया- कैसे उतार दूँ? मैया ने बाँधी है। उतारूँगा तो मैया को दुःख होगा।

सखा- फिर, क्या उपाय है इसका?

कन्हैया- मैं इसको पकड़ लेता हूँ जब पकड़ लूँगा तो ये बजेगी नहीं

सखा- हाँ, ये ठीक है।

अगले दिन सभी दोस्तों के साथ कन्हैया, घर से निकले, चुपके से, घंटी को पकड़ा और दोस्तों के साथ एक गोपी के घर में घुस गये।

कन्हैया ने घंटी से कहा- देख, बजना नहीं, तुझे भी माखन खिलाऊँगा।

माखन की, ऊपर टंगी मटकी को देख बालक, झुण्ड बनाकर खड़े हुए, उनके ऊपर कुछ बालक चढ़े और उनके ऊपर कुछ, फिर सबसे ऊपर चढ़े श्रीकृष्ण।……घंटी नहीं बजी।

श्रीकृष्ण को लगा कि मेरी बात मान रही है।

उन्होंने एक माखन के मटके में हाथ डाला, माखन निकाला और कुछ देर रुके। घंटी नहीं बजी। फिर दोस्त के मुख में माखन डाला तो भी घंटी नहीं बजी। आश्वस्त हो गये श्रीकृष्ण और उनके दोस्त। 

धीरे-धीरे सारा माखन, दोस्तों को खिलाने लगे, बन्दरों को खिलाने लगे………घंटी नहीं बजी। सभी खुश कि किसी को पता भी नहीं चल रहा और हम माखन खा रहे हैं

सबको माखन खाते देख, श्रीकृष्ण का भी मन ललचाया। क्योंकि घंटी बजी नहीं थी अब तक, वे भी निश्चिन्त थे कि बजेगी नहीं ये।  अपनी ऊँगली से थोड़ा सा माखन उठाया और अपने मुख में रख लिया।

………………घंटी बज उठी………।

सभी अवाक्।

सभी स्थिर हो गये, हाथ जहाँ थे, वहीं रुक गये, कि ये क्या हो गया/ ये घंटी क्यों बज उठी……सभी भागे।

उधर गोपी ने भी घंटी सुन ली।  उसे पता लग गया कि कन्हैया आया है। वो भी भागी कमरे की ओर।

सभी दोस्त तो भाग गये किन्तु कन्हैया पकड़े गये।

गोपी ने कहा कि चल तुझे अब मैं तेरी माँ पास लेकर चलती हूँ ताकि उसे भी पता लगे कि उसका लाला क्या करता है/ तेरे तो मुख में इस समय माखन भी है।

कन्हैया- अच्छा माँ! ठीक है। लेकिन मैं एक मिनट ज़रा घंटी से कुछ पूछ लूँ

कन्हैया ने घंटी से पूछा- मैंने कितना कुछ दोस्तों को खिलाया, बन्दरों को खिलाया, तू नहीं बजी। मैंने ज़रा सा माखन क्या मुख में रखा, तू बजने लगी? मैंने बजने से मना किया था ना।

घंटी- आपका आदेश तो सिर-आँखों पर। किन्तु आपका आदेश शास्त्रों में भी है कि जब भी आपको भोग लगता है, घंटी बजती है। घंटी के बिना भोग ही नहीं लगता। जब आप खाने लगे तो मुझे बजना पड़ा। आपकी बात मैं कैसे झूठ कर सकती थी?




रविवार, 16 अप्रैल 2023

भव सागर से पार होने का सरल उपाय।

 पूज्यपाद श्रील निष्किंचन जी महाराज कई बार एक प्रसंग सुनाते थे। 

एक चील अपने पंजों में छोटे से चूहे तो पकड़ के ले जा रही थी। उड़ते-उड़ते, रास्ते में अन्य चीलों ने उस पर झपटा मारा। आपा-धापी में चूहा चील के पंजे से छूट गया। भाग्य से वो एक घर के ऊपर बनी पानी की टंकी में गिरा जिसका ढक्कन खुला था। टंकी में पानी नहीं था।

चूहा कुछ समय के लिए तो बेहोश सा पड़ा रहा, फिर होश आते ही वो बाहर निकलने के लिए उतावला हो गया। निकले कैसे, चारों ओर तो दिवार है। वो चढ़ने की चेष्टा करता है किन्तु बार-बार फिसल कर नीचे गिर जाता है।

वहाँ पर एक आदमी टहल रहा था। कुछ ही देर में उसने भी आवाज़ सुनी। उसक ध्यान बार-बार आ रही आवाज़ की ओर गया। वो धीरे-धीरे पानी की टंकी के पास आ गया और देखते ही सारी बात समझ गया।

उसे उस चूहे की चेष्टा पर तरस आ गया। वो यह भी समझ गया कि अगर मैंने इसे नहीं निकाला तो ये यहीं मर जायेगा। वो कहीं से एक डंडा ले आया और उसे टंकी में इस तरह से टिकाया कि डंडे का एक किनारा टंकी के फर्श पर था और दूसरा किनारा बाहर दिवार पर टिका था।

चूहा उस डंडे पर चढ़ा और फट से निकल के भाग गया।

अब प्रश्न यह है कि वो चूहा कैसे बाहर आया?

सही उत्तर यह है कि उस चूहे के बार-बार प्रयास के कारण, उस व्यक्ति का हृदय पिघला और उसने वो डंडा टंकी में टिका दिया।

अगर चूहा यह प्रयास न कर रहा होता तो न तो उसकी आवाज़ वो व्यक्ति सुनता और न ही वो उसे निकलने में सहायता करता।

इसी प्रकार, हम अपनी चेष्टा से भव सागर से पार नहीं हो सकते। लेकिन हम अगर भजन करते रहेंगे, प्रयास करते रहेंगे तो गुरू जी को, भगवान को दया आ जायेगी और वो हम पर कृपा करेंगे और उस कृपा के बल पर हम भव सागर से पार हो जायेंगे।




गुरुवार, 6 अप्रैल 2023

ऐसे दयालु हैं श्रीकृष्ण।

कंस को जब ये पता लग गया कि उसे मारने वाला पैदा हो गया है तो उसने अपने मंत्रियों से मंत्रणा की व पूतना को बुला कर कहा कि जितने भी दस दिन तक के बच्चे हैं उन्हें दूध पिला-पिला कर मारो।

पूतना बच्चों का वध करने लगी।

उधर श्रीकृष्ण में सभी ज्ञानों का प्रकाश रहता है किन्तु वृज के भक्तों के प्रेम का रसास्वादन करने के लिए कुछ नहीं करते थे। उनके सारे कार्य उनकी शक्ति योगमाया द्वारा ही सम्पादित होते थे।

भगवान की इच्छा को जानकर उनकी शक्ति ने अपना विस्तार किया तो पूतना का ध्यान वृज की ओर गया। पूतना उड़ना जानती थी। बड़ी भयंकर दिखती थी, बड़ा मुँह, विशाल दाढ़ें, बड़ी-बड़ी आँख़ें, तीखे दांत, आदि। श्रीकृष्ण की इच्छा से वो सीधा श्रीनन्द-भवन ही आई, वृज में कहीं और नहीं जा पाई।

वैभव से भरे श्रीनन्द भवन में पूतना जब आई तो उसमे जाने से पहले उसने बहुत सुन्दर वेष बनाया। सुन्दर आँखें, सुन्दर शरीर्। उसे देखकर पहरेदारों ने रोका नहीं, ये सोचकर की कोई देवी चली आ रही है हमारे लाला को मिलने के लिए। जबकि पूतना यह सोच रही थी कि कुछ ही देर का काम है, अभी दूध पिलाऊँगी और छुट्टी।

उसने जब श्रीश्यामसुन्दर को दूध पिलाना शुरु किया तो श्रीकृष्ण दूध के साथ-साथ उसके प्राण भी पीने लगे।

कुछ ही पलों में पूतना को पता लग गया कि ये केवल दूध नहीं पी रहा। वो हाथ-पैर पटकने लगी, चिल्लाने लगी। श्रीकृष्ण मन ही मन हँसे ये सोचकर कि वैसे तो मैं किसी को पकड़ता नहीं, अगर पकड़ लूँ तो छोड़ना जानता ही नहीं अब कैसे छोड़ दूँ तुझे?

पूतना अपने असली रूप में आ गई और बाहर की ओर भागी। बहुत दूर नहीं जा पाई, और गौशाला में ही ढेर हो गई।

श्रीकृष्ण का स्पर्श मिलते ही वो पाप-रहित हो गई थी।

इतने दयालु हैं श्रीकृष्ण कि पूतना ने उन्हें दूध पिलाया था इसलिए उन्होंने पूतना को गोलोक में धाई माता कि गति दी व अपना पार्षद बनाया।

उनके स्पर्श से पूतना पाप-रहित हो गई थी, इसलिए जब गोपो ने उसें जलाया तो उसके शरीर से अद्भुत सुगन्ध आने लगी थी।