रविवार, 16 अप्रैल 2023

भव सागर से पार होने का सरल उपाय।

 पूज्यपाद श्रील निष्किंचन जी महाराज कई बार एक प्रसंग सुनाते थे। 

एक चील अपने पंजों में छोटे से चूहे तो पकड़ के ले जा रही थी। उड़ते-उड़ते, रास्ते में अन्य चीलों ने उस पर झपटा मारा। आपा-धापी में चूहा चील के पंजे से छूट गया। भाग्य से वो एक घर के ऊपर बनी पानी की टंकी में गिरा जिसका ढक्कन खुला था। टंकी में पानी नहीं था।

चूहा कुछ समय के लिए तो बेहोश सा पड़ा रहा, फिर होश आते ही वो बाहर निकलने के लिए उतावला हो गया। निकले कैसे, चारों ओर तो दिवार है। वो चढ़ने की चेष्टा करता है किन्तु बार-बार फिसल कर नीचे गिर जाता है।

वहाँ पर एक आदमी टहल रहा था। कुछ ही देर में उसने भी आवाज़ सुनी। उसक ध्यान बार-बार आ रही आवाज़ की ओर गया। वो धीरे-धीरे पानी की टंकी के पास आ गया और देखते ही सारी बात समझ गया।

उसे उस चूहे की चेष्टा पर तरस आ गया। वो यह भी समझ गया कि अगर मैंने इसे नहीं निकाला तो ये यहीं मर जायेगा। वो कहीं से एक डंडा ले आया और उसे टंकी में इस तरह से टिकाया कि डंडे का एक किनारा टंकी के फर्श पर था और दूसरा किनारा बाहर दिवार पर टिका था।

चूहा उस डंडे पर चढ़ा और फट से निकल के भाग गया।

अब प्रश्न यह है कि वो चूहा कैसे बाहर आया?

सही उत्तर यह है कि उस चूहे के बार-बार प्रयास के कारण, उस व्यक्ति का हृदय पिघला और उसने वो डंडा टंकी में टिका दिया।

अगर चूहा यह प्रयास न कर रहा होता तो न तो उसकी आवाज़ वो व्यक्ति सुनता और न ही वो उसे निकलने में सहायता करता।

इसी प्रकार, हम अपनी चेष्टा से भव सागर से पार नहीं हो सकते। लेकिन हम अगर भजन करते रहेंगे, प्रयास करते रहेंगे तो गुरू जी को, भगवान को दया आ जायेगी और वो हम पर कृपा करेंगे और उस कृपा के बल पर हम भव सागर से पार हो जायेंगे।




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