शुक्रवार, 3 मार्च 2023

भगवान जब देने पर आते हैं_______________

एक दिन की बात है नन्द-नन्दन श्रीकृष्ण घर मे खेल रहे थे कि उनके कानों में आवाज़ आई- फल ले लो, फल! ताज़े-ताज़े फल। मौसम के फल। 

श्रीकृष्ण ने सुना और बाहर की ओर भागे, देखने के लिए कौन है?

उन्होंने देखा कि एक फल-वाली फल बेचने के लिए आवाज़ लगा रही है। उसके सिर पर फलों से भरी एक टोकरी भी है।

नन्हें श्रीकृष्ण ने आवाज़ लगाई- ओ गोपी! मुझे फल दोगी?

गोपी ने गौर से देखा एक नन्हा सा सुन्दर बालक उसे पुकार रहा है। वो तो श्रीकृष्ण को देखते ही मोहित सी हो गई। पास आते हुए उसने कहा- फल तुम लोगे? मैं तो फल बेचूँगी

श्रीकृष्ण - अच्छा, तू फल बेचेगी? 

फलवाली तो श्रीकृष्ण को देखने में ही खो गई। उसक मन हो रहा था कि ये बालक कहीं ना जाये, अतः श्रीकृष्ण को रोकने के लिए उनसे बातें करने लगी।

फलवाली- देख लाला! फल तो मैं तुझे दे दूँगी, लेकिन इसके बदले में तुझे कुछ देना पड़ेगा।

श्रीकृष्ण- क्या? क्या लेगी तू?

फलवाली- मैं इसके बदले अनाज ले लूँगी।

श्रीकृष्ण- अच्छा, अच्छा! रुक, रुक्। कहीं जाना नहीं, मैं अनाज लेकर आता हूँ

फलवाली ने अपने सिर पर रखी टोकरी को नीचे रखा और पास में ही बैठ गई।

श्रीकृष्ण शीघ्रता से अन्दर गये और अनाज की टोकरी में से अपनी दोनों अँजुलियां भर लीं नन्हें_नन्हें हाथ श्रीकृष्ण के, भला कितना अनाज आया होगा? उनके मन में उत्सुकता है कि मैं जल्दी से वापिस उसके पास चला जाऊँ कहीं वो भाग ही न जाये?

मनुष्य का स्वभाव है कि वो भगवान से दूर भागता है। जबकि भगवान का स्वभाव है कि वे मनुष्य को अपने पास लाकर उस पर कृपा करना चाहते हैं उसे अपना प्रेम देना चाहते हैं

श्रीकृष्ण फटाफट बाहर की ओर भागे। दौड़ने से उनके हाथ हिल रहे हैं और हाथों में पकड़ा अनाज गिर रहा है। साथ ही श्रीकृष्ण ये भी सोच रहे हैं कि ये मेरे द्वार पर आई है, इसे खाली हाथ तो लौटा ही नहीं सकता। इसको भक्ति दे देता हूँ और भक्ति के साथ धन भी दे देता हूँ ताकि इसे काम न करना पड़े।

इस विचार को लिए श्रीनन्द लाल जी बाहर की ओर भाग रहे हैं

फलवाली इंतज़ार कर रही थी। श्रीकृष्ण भागते हुए आते देख मुस्कुराई व उनके रूप में खो गई। श्रीकृष्ण भागते-भागते उसके पास गये और अपने हाथ की दोनों मुट्ठियाँ उसकी टोकरी में खाली करते हुए बोले- ये ले, धान्।

फलवाली तो उनके रूप में ही खोई है। उसे पता ही नहीं चल रहा कि क्या हो रहा है? उसने देखा ही नहीं कि टोकरी में क्या गिरा? लाला के रूप में ही खोई-खोई, बोली- लाला, तू इतने सारे फल कैसे ले जायेगा?

लाला ने दोनों हाथ फैलाये और कहा कि इसमें रखती जा।

फलवाली हँस पड़ी और फल उनके हाथों पर रखने लगी। श्रीकृष्ण ने बाज़ुएं इकट्ठी कीं और फल समेटने लगे। सारे फले उसने श्रीकृष्ण को दे दिये। वह इस बात पर बिल्कुल विचार न कर पाई कि इतने सारे फल एक नन्हा सा बालक कैसे संभाल रहा है, वो तो बस उनके रूप में ही खोई हुई थी।

श्रीकृष्ण धीरे-धीरे घर की ओर मुड़े और चलने लगे। फलवाली उन्हें जाते हुए देखती रही। जब श्रीकृष्ण घर में चले गये तो फलवाली ने टोकरी उठाई और घर के लिए चल दी।

यशोदानन्दन श्रीकृष्ण ने मैया यशोदा को सारे के सारे फल दे दिये और बोले- मैया, ये लो फल।

मैया- ये कहाँ से आये?

श्रीकृष्ण- मैया, मैंने फलवाली से खरीदे हैं! उसको अनाज दिया और फल ले लिए।

मैया- लाला, इतने सारे फलों का क्या करूँगी?

श्रीकृष्ण- इनको सबको बाँट दो।

यशोदा मैया ने सबको बुलायाऔर सबको बाँटने लगीं इतने फल थे कि खत्म ही होने को नहीं आ रहे थे। सबको बाँट देने पर भी फल बचे हुए थे। मैया ने जैसे-तैसे उन्हें अपनी झोली से उतारा। मैया कई दिन तक सोचती रहीं कि कैसे फल थे वो कि खतम ही होने को नहीं आ रहे थे?

उधर फलवाली श्रीकृष्ण के रूप में खोई-खोई घर की ओर जा रही थी। वो सीधा घर ही गयी। उसे इस बात का बिल्कुल आभास नहीं था कि फल तो मैंने सारे खतम कर दिये, फिर भी मेरी टोकरी इतनी भारी क्यों है? 

जब उसने टोकरी सिर से उतार कर रखी तो उसने देखा कि उसकी टोकरी रत्नों से भरी हुई थी।

महान वैष्णव आचार्य श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर जी बताते हैं कि नन्दनन्दन श्रीकृष्ण सभी को आनन्द देते हैं उन्होंने कभी किसी से भेद-भाव नहीं किया। ये फलवाली, वन में रहने वाली पुलिन्द जाति की थी। श्रीकृष्ण ऐसे उदार हैं कि जो उनके पास चला आता है उसे सब कुछ दे देते हैं




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