गुरुवार, 21 अप्रैल 2022

ऐसा वात्सल्य माता यशोदा जी का श्रीकृष्ण के लिए

सारी कलायें, सारे गुण, सारे ऐश्वर्यों की परिपूर्णतम् मात्रा से भरे हैं---- यशोदानन्दन भगवान श्रीकृष्ण।

सर्व-शक्तिमान हैं! हर प्रकार का ऐश्वर्य है उनके पास। किन्तु वृज की लीलायों में भगवान का इतना ऐश्वर्य होते हुये भी वृजवासियों को उनका ऐश्वर्य नहीं दिखता। भगवान सर्वशक्तिमान हैं, सब कुछ कर सकते हैं, किन्तु वृजवासियों के प्रेम के आगे भगवान का ऐश्ववर्य छुप जाता है।

मैया यशोदा जी को भगवान श्रीकृष्ण के लिए इतना प्रगाढ़ प्रेम है, जिसकी कोई सीमा ही नहीं है।

उन्हें श्रीकृष्ण के मंगल की ही चिन्ता रहती है। वे यही सोचती हैं कि मेरा लाला इतना सुकुमार, सुकोमल है, भोला है इसकी रक्षा हर प्रकार से होनी चाहिये। इसे कहीं कुछ हो ना जाये।

अपनी विभिन्न लीलायों से भगवान श्रीकृष्ण कभी-कभी बताते भी हैं कि मैं कौन हूँ किन्तु यशोदा मैया को समझ में ही नहीं आता था। उनका वात्सल्य इतना ज्यादा है कि वे अपने लाला को केवल अपना पुत्र ही मानती हैं

जैसे , एक बार, कन्हैया सोने की लीला कर रहे थे और मैया यशोदा जी उन्हें निहार रही थीं स्वप्न में श्रीकृष्ण बोल उठे -- हे शम्भु! आओ, आपका स्वागत है, मेरी दाईं ओर बैठिये, हे ब्रह्मण! आपका स्वागत है, मेरी बाईं ओर बैठिये, हे कार्तिकये! कुशल से तो हो, सब ठीक है, हे इन्द्र! आपका क्या हाल है,  हे कुबेर! बहुत दिनों से आपको देखा नहीं? इस प्रकार से श्रीकृष्ण कुछ-कुछ बोलने लगे

यशोदा मैया भी सुन रही थीं पहले तो हैरान हुईं कि मेरा लाला सपने में बोल रहा है। लेकिन जब सुना कि क्या बोल रहा है तो वे सोचने लगीं कि ये क्या बोले जा रहा है?

वे घबरा गईं कि मेरा लाला ऐसे नाम कैसे ले सकता है? वे घबरा गईं उन्हें समझ में ही नहीं आया कि वे क्या करें?

अचानक झटके से अपने लाला के माथे को सहलाने लगीं और कहने लगीं-- लाला, लाला! ऐसे नहीं बोलते। ऐसे नहीं कहते। ऐसा नहीं बोलना चाहिए।

तभी उन्हें लगा कि हो सकता है कि कोई अला-बला-भूत मेरे बच्चे के ऊपर आ गई है, इसकी उससे रक्षा करनी पड़ेगी।

वात्सल्य रस से भरी हुई माता, श्रीकृष्ण के आस-पास थुत्कार करती हुईं, प्रार्थना करने लगीं

कितनी अद्भुत बात है कि जो सारे ब्रह्मण्डों के रक्षक हैं, सबके पालक हैं, उनकी रक्षा का उपाय माता यशोदा कर रही हैं, ऐसा वात्सल्य माता यशोदा जी का श्रीकृष्ण के लिए।


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