दुनिया में हम देखते ही हैं कि माँ को बच्चे के भोजन की, आराम की चिन्ता रहती है। भगवान के हृदय में तो करोड़ों, अरबों माताओं का वात्सल्य है। वे अपने भक्तों की चिन्ता करते ही रहते हैं।
सनातन गोस्वामी जी वृज में श्रीनन्द गाँव के पावन सरोवर के पास रहकर भजन कर रहे थे। वैसे तो वे वृज के भिन्न-भिन्न स्थानों पर रहकर भजन करते थे।
सुन्दर सरोवर। उस समय वहाँ बहुत घना जंगल था। एक दिन भगवद् स्मरण में खो गये। दिन बीतते पता ही नहीं चला। भगवान एक ग्वाले बालक के रूप में पहुँच गये उनके पास और बोले - बाबा! यह दूध ले लो। आपने दिन भर कुछ खाया नहीं है, इसलिए दूध पी लो।
श्रील सनातन गोस्वामी जी देख रहे हैं उस बालक की ओर और यह भी विचार कर रहे हैं कि ये क्या बोल रहा है?
बालक कि सुन्दरता पर मोहित भी हुये जा रहे हैं। इससे पहले कुछ पूछ पाते, वही बालक फिर बोला - बाबा! यहाँ पर बहुत घना जंगल है। इस वन में बहुत से वन्य प्राणी, शेर आदि होते हैं और वे इस सरोवर में पानी पीने आते रहते हैं। इसलिये यहाँ पर रहना है तो एक कुटिया बना कर रहो।
यह कहकर श्रीकृष्ण अन्तर्धान हो गए।
श्रीसनातन गोस्वामी जी भाव में बह गये और रोने लगे यह सोचकर कि श्रीकृष्ण को मेरी कितनी चिन्ता है! मेरे खाने के लिए ले आये, मुझे कुटिया बनाने के लिए बोल रहे हैं! आदि। कितने वत्सल प्रभु हैं मेरे……………।
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