शनिवार, 5 फ़रवरी 2022

लोगों को पता ही नहीं था कि वे कहाँ-कहाँ पर हैं...........

श्रील सनातन गोस्वामी जी के हृदय में जब भगवान को पाने की इच्छा प्रबल हो गई तो वे अपना सब कुछ त्याग कर, पूर्ण वैराग्य के साथ वृन्दावन की ओर चल दिए।

बंगाल से चलते हुए रास्ते में बनारस आया। वहाँ आकर उन्हें पता चला कि श्रीचैतन्य महाप्रभु जी आये हुये हैं। उन्हें प्रणाम करने कि इच्छा से वे उन्हें मिलने गये। वहाँ पर और भी भक्त थे श्रीचैतन्य महाप्रभु जी के। हरिचर्चा होने लगी, बातें भी होने लगीं।

श्रील सनातन गोस्वामी जी ने देखा कि श्रीचैतन्य महाप्रभु जी बार-बार उनके द्वारा ओड़े हुए महंगे कम्बल को ही देखे जा रहे हैं। बुद्धिमान तो हैं हीं, हमारे सनातन गोस्वामी जी, समझ गये कि मैं तो सब कुछ छोड़ कर, आ गया हूँ तो भी इस कम्बल को संभाले हुए हूँ -- यह बात श्रीमहाप्रभु जी को जम नहीं रही।

चुपचाप उठे और गंगा जी के घाट पर आ गये। थोड़ी ही देर में उन्होंने एक महात्मा जी को गुदड़ी ओड़े बैठे देख लिया और उनके पास चले गये। (गुदड़ी - फटे-पुराने कपड़ों से बनाया हुअ कम्बल।)

श्रील सनातन गोस्वामी जी -- बाबा! मुझे आपकी यह गुदड़ी चाहिये।

महात्मा जी-- यह क्या कह रहे हैं आप? मेरे पास तो केवल यही है।

सनातन गोस्वामी जी-- मैं आपको इसके बदले में यह कम्बल भी तो दे दूँगा।

महात्मा जी-- अच्छा, तब ठीक है।

यह कहकर महात्मा जी ने कम्बल ले लिया और गुदड़ी दे दी।

सनातन गोस्वामी जी ने गुदड़ी ओड़ी और महाप्रभु जी के पास आ गये।

महाप्रभु जी यह देखकर बहुत प्रसन्न हुये कि गोस्वामी जी उनके मन की बात जान गये। 

सनातन गोस्वामी जी तो भक्त हैं, भगवान के हृदय की बातों को जानते हैं।

इतना प्रसन्न हुये महाप्रभु जी कि उन्होंने श्रीसनातन गोस्वामी जी को बहुत ही सेवायें दीं, जिनमें यह भी था कि वृज में लुप्त तीर्थों का उद्धार, श्रीकृष्ण विग्रहों की सेवा का प्रकाश, आदि।

कालक्रम से, समय बीतने पर भगवान श्रीकृष्ण की लीला स्थलियाँ लुप्त हो गई थीं। लोगों को पता ही नहीं था कि वे कहाँ-कहाँ पर हैं उनमें से काफियों को श्रीसनातन गोस्वामी जी ने पुनः स्थापित किया।

आज हम जो वृज में भगवान श्रीकृष्ण के विभिन्न लीला स्थलों के दर्शन करने जाते हैं, वहाँ पर प्रणाम कर पा रहे हैं, आदि-- यह सब सनातन गोस्वामी जी की ही देन हैं।


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