नन्दनन्दन श्रीकृष्ण मधुर से भी मधुर। वृज में उनकी लीलायें तो उनसे भी मधुर हैं।
अपने भक्तों के बीच में साधारण मनुष्य की तरह रहते हैं भगवान, ताकि वे उनके प्रेम का रसास्वादन कर सकें। वृज के भक्त भी उनके साथ ऐसा ही व्यवहार करते हैं मानों भगवान कोई आम आदमी हों।
कोई भी व्यक्ति भगवान से प्रार्थना करता है, उनसे उम्मीद करता है कि वे उसकी रक्षा करेंगे, लेकिन वृज में सारे लोग भगवान के लिए ही जीवन जीते हैं, उनके सुख की ही चिन्ता करते हैं और उन्हीं की रक्षा के लिए भी चिन्तित रहते हैं।
उनकी यही सोच कि हमारा कृष्ण कितना कोमल सा है, सुकुमार है, इसे कुछ हो न जाये, इसे सबसे बचा कर रखना चाहिए।
वृज के भक्तों का जीवन ही भगवान श्रीकृष्ण के लिए है।
श्रील रूप गोस्वामी जी ने भगवान श्रीकृष्ण की बहुत सी लीलाएँ अपने ग्रन्थ पद्यावली में लिखी हैं। भगवान के शुद्ध भक्तों को तो भगवान की लीलाओं के दर्शन होते हैं।
पद्यावली 150, 151 में श्रील रूप गोस्वामी जी बताते हैं कि मैया यशोदा जी को श्रीकृष्ण के लिए असीम प्रेम है। उनको यही चिन्ता रहती कि मेरा लाला हर प्रकार से सुखी रहे। वे उसके सुख के लिए ही जीती हैं।
एक बार शाम को मैया, श्रीकृष्ण को गोद में लेकर थपकी देते हुए सुलाने लगीं। उन्हें यही चिन्ता थी कि मेरा लाला सुबह से जगा हुआ है, कितना थक गया होगा, इसलिए इसको अब सो जाना चाहिए।
मैया की उन्हें सुलाने के लिए अथक चेष्टा को देखकर कन्हैया ने कहा--- मैया! ओ मैया! मुझे नींद नहीं आ रही।
मैया--- लाला! फिर?
लाला--- मुझे कहानी सुनाओ।
मैया-- देख लाला! कहानी तो मैं तुझे सुना दूँगी लेकिन मुझे पता कैसे चलेगा कि तू सो रहा है कि कहानी सुन रहा है?
लाला--- मैया, मैया मैं "हूँ", "हूँ" करता रहूँगा।
मैया--- ठीक है।
मैया ने कहानी को सुनाना शुरू किया।
मैया--- लाला! त्रेता युग में एक राजा राम थे। श्रीराम जी।
लाला--- हूँ।
मैया--- उनको उनके पिताजी ने 14 वर्षों के लिए जंगल में भेज दिया।
लाला--- हूँ।
मैया--- वहाँ पर एक दुष्ट रावण उनकी पत्नी श्रीसीता जी को उठा कर ले गया।
यह सुनते ही श्रीकृष्ण, श्रीराम के आवेश में आ गये, उठ बैठे और ज़ोर से बोले-- हे लक्ष्मण! हे लक्ष्मण, हमारा धनुष कहाँ है? हमारा धनुष लाओ। हमारा धनुष लाओ।
मैया घबरा गई कि लाला को यह क्या हो गया? उन्होंने फटाफट श्रीकृष्ण को पकड़ा और उन्हें सहलाने लगीं। श्रीकृष्ण के बालों में हाथ फेरने लगीं। फटाफट बोल उठीं--- लाला! मेरे प्यारे कन्हैया! तू चिन्ता ना कर। मैं तुझे कोई और कहानी सुनाती हूँ।
श्रीकृष्ण मैया की गोद में चुपचाप लेट गये।
मैया ने फिर कहानी शुरू की।
मैया--- लाला! एक बहुत बड़े भक्त हुये हैं भगवान के, प्रह्लाद जी।
लाला--- हूँ।
मैया--- उनके पिता उनको बहुत तंग करते थे। भगवान तो अपने भक्त को बहुत प्यार करते हैं। अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए और उस दानव को मारने के लिए भगवान खम्बे में से प्रकट हो गये।
श्रीकृष्ण यह सुनकर मुस्कुराने लगे।
मैया यह तो न जान पाई कि उनका लाला क्यों मुस्कुरा रहा है लेकिन उन्होंने भगवान की बन्द होती आँखों से यह जान लिया कि इसको नींद आनी शुरू हो गई है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें