श्रील सनातन गोस्वामी जी भगवान श्रीकृष्ण के बहुत प्रिय हैं। यह बात श्रील नरहरि सरकार ठाकुर जी ने अपने ग्रन्थ भक्ति रत्नाकर में बताया कि श्रील सनातन गोस्वामी अभी जब छोटे बच्चे ही थे तो एक रात को उन्हें स्वप्न हुआ। सपने में एक ब्राह्मण उन्हें श्रीमद् भागवतम् दे रह था।
सपना देखते ही श्रीसनातन जी उठ बैठे। आस-पास देखा तो कोई नहीं। पूर्ण अंधकार था, रात का।
सुबह हुई, लेकिन उनकी आँखें द्वार पर ही टीकी रहीं।
कुछ ही देर में किसी ने दरवाज़ा खटखटाया और सनातन जी लपक के दरवाज़े के पास जा पहुँचे। द्वार खोला तो वही, रात में सपने में आये ब्राह्मण खड़े थे। उन्होंने श्रीसनातन को श्रीमद् भागवतम् प्रदान की।
तब से ही श्रील सनातन गोस्वामी जी श्रीमद् भागवतम् के माध्यम से श्रीकृष्ण प्रेम में मग्न हो गये। उन्होंने श्रीमद्भागवतम् के ऊपर टीका भी लिखी।
श्रील सनातन गोस्वामी जी भक्ति में तो बढ़े-चढ़े थे ही, दुनियावी दृष्टि से भी किसी क्षेत्र में कम नहीं थे। प्रखर बुद्धिमान, व्यवहार में अति कुशल, उत्तम वैराग, आदि। ऐसे बुद्धिमान कि उनके राज्य के राजा ने उन्हें अपना प्रधानमन्त्री बनाया हुआ था और हर कार्य में सलाह लेते थे।
इतना सुन्दर व्यवहार कि सारे वृजवासी अपनी-अपनी समस्यायें लेकर उनके पास ही जाते थे। वे इतन बढ़िया हल बताते थे कि सभी सन्तुष्ट हो जाते थे। अपने बढ़िया व्यवहार के कारण सारा वृज उनका बहुत सम्मान करता था। उनका इतना सम्मान था कि जब श्रील सनातन गोस्वामी जी ने संसार से धाम की ओर यात्रा की, उस पूर्णिमा के दिन सारे वृज ने अपने केश मुण्डवाये थे। आज भी वृज में उस पूर्णिमा तिथि को मुढ़िया पूर्णिमा कहते हैं।
एक बार श्रीसनातन गोस्वामी जी को बनारस में मिले। प्रणाम किया व बोले-- प्रभो, वैसे तो दुनिया वाले मुझे विद्वान मानते हैं, लेकिन मैं जानता हूँ कि मैं ऐसा नहीं हूँ। क्योंकि मैं यही नहीं जानता हूँ कि मैं कौन हूँ? मुझे दुनिया के सन्ताप क्यों सता रहे हैं? मैंने अन्त में कहाँ जाना है? मेरा मंगल कैसे होगा और उसके लिए मुझे करना क्या होगा?
कितने अद्भुत प्रश्न हैं!
प्रातः स्मरणीय श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज जी बताते हैं कि जिस प्राणी को अपने कल्याण की इच्छा है उसके हृदय में यह प्रश्न उठेंगे। हर व्यक्ति को ये प्रश्न लेकर अपने गुरू के पास जाना चाहिए।
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