श्रील सनातन गोस्वामी जी जब गोकुल महावन में रह रहे थे, उन दिनों में, एक दिन जब रमणरेती में से होकर जा रहे थे, तो उस समय वहाँ पर बहुत से बालक खेल रहे थे।
श्रील सनातन गोस्वामी जी ने देखा कि कि बालक खेल रहे हैं। अचानक उनकी दृष्टि एक बालक पर ठहर गई। बालक बहुत सुन्दर था। इतना सुन्दर कि श्रील सनातन गोस्वामी जी की नज़र उस पर से हट ही नहीं रही थी।
सनातन गोस्वामी जी सोचने लगे कि क्या बात है, वे कुछ आगे चले, लेकिन मन बार-बार उस बालक की ओर ही खिंचा चला जा रहा था।
फिर रुके, और घूम कर देखने लगे खेलते हुए बच्चों की ओर। नज़र फिर उसी बालक पर जाकर ठहर गई। और तो और उस बालक को देखने में ही सनातन गोस्वामी जी को आनन्द आने लगा।
वो बालक अपने खेल में मस्त है किन्तु सनातन गोस्वामी जी का ध्यान उसी बालक की ओर है।
उन्होंने विचार किया कि मेरा मन बार-बार इस बालक की ओर क्यों जा रहा है? कुछ तो बात है कि जो मेरे साथ यह हो रहा है।
वे वहीं पर ही रुक कर खेल खत्म होने का इंतज़ार करने लगे। ताकि खेल समाप्त हो और पता लगाया जा सके कि ये कहाँ रहता है, कौन माता-पिता हैं इसके, यह क्या करता है?……………
काफी देरे के बाद जब दिन ढलने लगा तो सभी बच्चे अपने-अपने घर की ओर चल दिये। वो बालक भी अपने घर की ओर चला। श्रील सनातन गोस्वामी जी उसके पीछे-पीछे चलने लगे।
चलते-चलते बालक एक घर में घुस गया। सनातान गोस्वामी जी समझ गये कि ये इसका घर है।
वे भी पीछे-पीछे अन्दर चले गए। देखा तो वहाँ कोई भी नहीं। वो बालक एक कमरे में चला गया। सनातन गोस्वामी जी भी पीछे-पीछे उसी कमरे में चले गये।
वहाँ भी कोई नहीं। लेकिन वहाँ पर श्रीमदन-मोहन जी को खड़े देखा। सनातन गोस्वामी जी समझ गये कि ये बालक हो ना हो हमारे ठाकुर श्रीमदन-मोहन जी ही हैं।
कुछ बोले नहीं, प्रणाम किया और आ गये।
ठाकुर मदन-मोहन जी भी समझ गये कि सनातन गोस्वामी जी उन्हें पहचान गये हैं।
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