गुरुवार, 20 जनवरी 2022

किस धन के लिए जब उन्होंने पारस-मणि को यमुना जी में फेंक दिया…………

बहुत समय पहले की बात है। बंगाल के एक भक्त श्रीजीवन चक्रवर्ती जी काशी में रहते हुए श्रीशिव जी महाराज की उपासना किया करते थे। वे गरीब थे और धन की लालसा से शिव जी की उपासना किया करते थे।

शिव जी तो आशुतोष हैं, जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। अतः प्रकट हो गये।

जीवन चक्रवर्ती जी ने उन्हें प्रणाम किया और कहा --- प्रभु ! मैं तो गरीब हूँ । यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मुझे धन दे दीजिये।

शिव जी ने उसके कल्याण के लिए उससे कहा--- आप वृन्दावन में श्रीसनातन गोस्वामी जी के पास जायें  उनसे कहना कि मैंने भेजा है।

जीवन चक्रवर्ती जी --- जो आज्ञा।

शिव जी यह कहकर अन्तर्धान हो गये। जीवन चक्रवर्ती जी वृन्दावन के लिए चल दिये।

वृन्दावन पहुँच कर उन्होंने किसी से पूछा कि श्रीसनातन गोस्वामी जी कहाँ मिलेंगे ? 

उत्तर मिला--- वो सामने जो मधुकरी कर रहे हैं, वे ही श्रीसनातन गोस्वामी जी हैं। 

जीवन चक्रवर्ती जी सोचने लगे कि ये तो स्वयं ही भिक्षा माँग रहे हैं, भला इनके पास धन क्या होगा?...................... किन्तु शिव जी ने कहा है तो इनके पास जाना तो पड़ेगा ही।

यह सोचकर चक्रवर्ती जी, सनातन गोस्वामी जी के पीछे-पीछे चल दिये।

श्रील सनातन गोस्वामी जी अपनी कुटिया में लौटकर आये ही थे कि जीवन चक्रवर्ती जी भी वहीं पहुँच गये।

प्रणाम किया और बोले कि शिव जी ने मुझे आपके पास भेजा है। यह कहकर उन्होंने सारी बात श्रीसनातन गोस्वामी जी को सुना दी।

सारी बात सुनकर सनातन गोस्वामी जी ने कहा --- आप मेरी स्थिति तो देख ही रहे हैं। भिक्षा माँग कर मैं जीवन यापन करता हूँ। भला मेरे पास आपको देने के लिए धन कहाँ से आयेगा? 

जीवन चक्रवर्ती जी --- मैं भी यही सोच रहा था कि भला आपके पास धन कहाँ होगा? अवश्य ही मेरे सुनने में भूल हो गई है या मुझसे कोई गलती हो गई है।

उन्होंने सनातन गोस्वामी जी को प्रणाम किया और लौट आये।

सनातन गोस्वामी जी सोचने लगे कि शिव जी तो परम वैष्णव हैं, उनसे कोई गलती नहीं हो सकती। क्या कारण होगा जो उन्होंने इस भक्त को मेरे पास भेज दिया? 

कुछ ही देर में उन्हें याद आया कि हाँ, मेरे पास एक स्पर्श मणि रखी है।  

उन्होंने किसी को उन भक्त को बुलाने के लिए भेजा।

जब जीवन चक्रवर्ती जी आ गये तो श्रीसनातन गोस्वामी जी ने उनसे कहा कि मुझे याद आ गया कि मेरे पास एक पारस मणि है, जो शायद इस मिट्टी के ढेर में कहीं होगी। इसे आप खोदो।

थोड़ा सा खोदने पर ही पारस मणि मिल गई। सनातन गोस्वामी जी ने उसे वो मणि दे दी। 

जीवन चक्रवर्ती जी ने बड़ी ही प्रसन्नता से उसे 1-2 लोहे कि वस्तुयों से छुआ। जब वे सोने में तब्दील हो गईं तो जीवन चक्रवर्ती खुशी से उछल पड़े कि अब मैं धनी हो गया हूँ। वे खुशी-खुशी सनातन गोस्वामी जी को प्रणाम करके लौट गये।

वापिस जाते-जाते सोचने लगे कि कितनी अद्भुत बात है कि उन गोस्वामी जी को याद भी नहीं था कि उनके पास ये मणि रखी हुई है और तो और यह मणि उन्होंने मिट्टी में फेंकी हुई थी। 

चलते-चलते उनके कदम रुके जब यह विचार आया कि पारस मणि को मिट्टी में फेंका हुआ था, ऐसे कि जैसे ये बेकार की वस्तु है, इसका अर्थ यह हुआ कि उनके पास कोई इससे भी कीमती वस्तु है, क्योंकि कोई भी बहुमुल्य वस्तु को ऐसे बाहर मिट्टी में नहीं फेंक के रख देता।

यह सोचकर वे वापिस लौट आये।

वापिस आकर श्रीसनातन गोस्वामी जी को प्रणाम किया और अपने मन में उठे विचार उनके सामने रखे।

श्रीसनातन गोस्वामी जी हँसे व बोले --- हाँ! इससे भी कीमती धन है किन्तु उसे पाने के लिए इस मणि का मोह त्यागना होगा।

चक्रवर्ती जी ने वो मणि यमुना जी में फेंक दी और स्नान करके श्रीसनातन गोस्वामी जी के पास आ गये।

तब श्रील सनातन गोस्वामी ने उन्हें हरे कृष्ण महामन्त्र प्रदान करते हुए इस महामन्त्र की श्रेष्ठता, सर्वोत्तमता बताई औ यह भी बताया कि इस महामन्त्र की साधना करने से संसार तो क्या ब्रह्माण्ड का सबसे श्रेष्ठ धन यानिकि श्रीकृष्ण प्रेम धन की प्राप्ति हो जाती है। यह श्रीकृष्ण प्रेम ही जीव का पंचम् पुरुषार्थ है।


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