सोमवार, 31 जनवरी 2022

…………………मैं तो इसमें कुछ नहीं कर सकता। लेकिन यह हमारे…………

भगवान के महान भक्त श्रील सनातन गोस्वामी जी ने जब रमणरेती में भगवान मदन-मोहन जी को पहचान लिया तो भक्त-भगवान की आपस में लीलायें चलने लगीं। पूरे वृज में यह मशहूर हो गया कि भगवान मदन-मोहन जी, श्रील सनातन गोस्वामी जी के प्रेम के अधीन हो गये हैं। 

एक दिन मदन-मोहन जी ने अपनी सेवा में नियुक्त ब्राह्मणी को प्रेरणा दी तो उन्होंने श्रील सनातान गोस्वामी जी से कहा कि बाबा, मैं अब वृद्ध हो गयी हूँ, मुझसे अब बहुत सी सेवायें नहीं हो पाती हैं, तो आप इन्हें अपने साथ ही ले जायें व इनकी सेवा किया करें।

इस प्रकार श्रीमदन-मोहन जी, श्रील सनातन गोस्वामी जी के साथ वृन्दावन आ गये। वृन्दावन में श्रील सनातन गोस्वामी जी ने श्रीमदन-मोहन जी को स्थापित किया और उनकी सेवा करने लगे।

सनातन गोस्वामी जी तो मधुर रस के भक्त हैं। भगवान अपने शुद्ध भक्तों के साथ बातें करते हैं, उनके हाथ से खाते हैं, उनके साथ खेलते हैं, उनके साथ नाचते भी हैं। 

सनातन गोस्वामी जी मधुकरी भिक्षा करते थे व जो मिल जाता था, वही पाते थे। ज्यादातर आटे का गोला बनाकर उसे भुन लेते थे व वही खाते थे।

चलती भाषा में उसे आटे का टिक्क्ड़ कहते हैं। सनातन गोस्वामी जी भोग में श्रीमदन मोहन जी को वही देते थे।

एक दिन दोपहर में भोग लगाने के बाद, श्रील सनातन गोस्वामी जी बाहर बैठकर हरिनाम करने लगे। कुछ ही देर में अन्दर से आवाज़ आई-- बाबा! साथ में अगर नमक दे देते, तो अच्छा होता। क्या नमक मिलेगा?

सनातन गोस्वामी जी समझ गये कि मदन-मोहन जी को कुछ करना है इसलिये नमक माँग रहे हैं। यह सोचकर उन्होंने कहा-- मेरे पास तो यही है जो मैं भोग में दे सकता हूँ।

मदन-मोहन जी ने कुछ कहा नहीं।

कुछ दिन बीत गये।

फिर एक दिन भीतर से आवाज़ आई-- बाबा! क्या साथ में कुछ और खाने के लिये मिलेगा?

सनातन गोस्वामी जी समझ गये कि मदन-मोहन जी अपनी सेवाओं का विस्तार करना चाहते हैं।

उन्होंने यही सोचकर कहा-- अगर आप इतना कुछ ही चाहते हैं तो उसकी व्यवस्था भी कीजिए।

मदन-मोहन जी जान गये कि सनातान गोस्वामी जी उनके मन की इच्छा को समझ गये हैं। बोले-- ठीक है, तो क्या मैं व्यवस्था कर लूँ?

सनातन गोस्वामी जी-- जी बिल्कुल।

इस प्रकार कुछ दिन और बीत गये।

उन दिनों में यमुना जी में जल का बहुत ज्यादा प्रवाह था। उस जल में समुद्री जहाज चला करते थे। एक दिन एक जहाज उसमें फंस गया। 

नाविकों ने बहुत चेष्टा की किन्तु जहाज निकल नहीं पाया। 

पास में ही वृन्दावन है, यह जानकर नाविक व जहाज का मालिक वहाँ आये सहायता माँगने के लिए।

वृजवासियों ने कहा-- वहाँ ऊपर टीले पर हमारे गोस्वामी जी हैं। आप उनसे प्रार्थना करें। अगर वे चाहें तो आपका वो जहाज वहाँ से निकल सकता है।

यह सुनकर वो सेठ श्रील सनातन गोस्वामी जी के पास पहुँचा और सारी बात बताई। सनातन गोस्वामी जी ने कहा-- देखो, मैं तो इसमें कुछ नहीं कर सकता। लेकिन यह हमारे ठाकुर जी हैं। इनका नाम मदन-मोहन जी है। आप इनसे प्रार्थना करें। ये अगर चाहें तो कुछ भी कर सकते हैं। 

उन जहाज के स्वामी का नाम कपूर जी था।

उन्होंने मदन-मोहन जी से प्रार्थना करते हुए कृपा की याचना की।

भगवान तो सर्व-शक्तिमान हैं। कुछ ही देर में जहाज वहाँ से निकल गया। सेठ बहुत प्रसन्न हुआ। ऐसा कहा जाता है कि उस यात्रा में वो जो सामान बेचने के लिए ले जा रहा था, उसे उसमें बहुत फायदा हुआ। वापसी में वो फिर वृन्दावन आया।

उसने मदन-मोहन जी के लिए विशाल मन्दिर व बड़ी सी गौशाला बनवाई।



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