व्यक्ति के प्यार में दम होना चाहिये, उसकी भक्ति में दम होना चाहिये, उसक समर्पण अत्यधिक होना चाहिए तब ही भगवान श्रीकृष्ण से जवाब बहुत जल्दी और बहुत ज्यादा मिलता है।
ऐसी कहावत भी है कि एक कदम हम कृष्ण की ओर चलें, हमें लपकने के लिए श्रीकृष्ण 10 कदम चले आते हैं।
श्रीजगन्नाथ धाम, श्री जगन्नाथ मन्दिर चाकदह में जगन्नाथ जी, पुरी से चले आये, इतनी दूर, अपने भक्त श्रील जगदीश पण्डित जी के लिए, उन जगदीश पण्डित जी की पत्नी भी बहुत अच्छी भक्त हैं।
दोनों भक्तों की भक्ति के बल पर भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु जी व श्रीनित्यानन्द प्रभु जी दो बार इस स्थान पर आये।
एक बार जब श्रीचैतन्य महाप्रभु जी जाने लगे तो जगदीश पण्डित जी की धर्मपत्नी श्रीमती दुःखिनी माता जी रोने लगीं।
श्रीचैतन्य महाप्रभु जी ने पूछा -- माता जी! आप क्यों रो रहे हो?
दुःखिनी माता जी श्रीचैतन्य महाप्रभु जी को माँ की तरह स्नेह करती थीं, बोलीं -- आप जा रहे हो। आपके जाने से सारे भक्त चले जायेंगे। कितना आनन्द है आपके यहाँ होने से।
श्रीमहाप्रभु -- माँ! मैं हमेशा आपके पास रह जाऊँ।
माता जी -- यदि ऐसा हो जाये तो बहुत ही अच्छा।
श्रीचैतन्य महाप्रभु जी ने अपने हाथों से अपना एक विग्रह तैयार किया और दुःखिनी माता जी को दे दिया । वो विग्रह आज भी श्रीगौर-गोपाल के नाम से इस मन्दिर में सेवित हैं।
एक बार माता जी खीर बना रही थीं। भगवद् भाव में डूबी हुई दूध को उबाल रही हैं। चावल भी डाल दिये उसमें। माता जी ने मीठा डाला……माता जी को ख्याल आया कि मीठा तो डाल दिया किन्तु हिलाया ही नहीं। ऐसा सोचकर वे खीर को हिलाने लगीं। इतने में जगदीश पण्डित जी घर आ गये।
बोले -- अरी क्या कर रही हो तुम?
माता जी -- खीर हिला रही हूँ।
जगदीश जी -- खीर तो हिला रही हो, लेकिन कड़छी से हिलाओ, तुमने तो उबलती हुई खीर में अपना हाथ ही डाला हुआ है।
माता जी को पता ही नहीं चला कि वे उबलती खीर में हाथ डाल कर उसे हिला रही हैं।
भगवान की ऐसी कृपा कि उनके हाथ पर एक भी फफोला नहीं हुआ, हाथ जला तक नहीं।
जब भोग लगाने गये तो देखा कि गौर-गोपाल जी के हाथ में फफोले पड़े हैं।
यह देखकर दोनों ही रोने लगे, कि हे गौर-हरि यह क्या किया आपने, हमारा कष्ट अपने पर ले लिया।
हरे कृष्ण!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें