ध्रुव जी को नारद जी के कहा था कि ध्रुव ये जो तेरे घर का वातावरण ऐसा हुआ कि तू घर छोड़ कर जंगल में आ गया है, इसमें तेरी सौतेली माता का कोई दोष नहीं है। वो तो सिर्फ निमित्त है।
संसार में कहीं भी हमारी आसक्ति है या द्वेष है तो हमारी भगवद् प्राप्ती नहीं हो सकती। जैसे ही नारद जी ने ध्रुव को बोला कि तेरे दुःख का कारण तेरी सौतेली माता नहीं है, वो तो निमित्त मात्र है, तेरे कर्म ही इसका कारण है, जैसे ही ये उन्होंने बोला, ध्रुव ने साथ-साथ ही अपनी माता के प्रति सारी गलत भावनाओं का त्याग कर दिया।
उसी का परिणाम हुआ कि छः महीनों में उसे भगवान मिल गये।
हानि-लाभ, मान-अपमान, जीवन-मरण, ये सब विधि के हाथ है। हमारे हाथ में नहीं है।
कोई हानि नहीं चाहता, कोई अपमान नहीं चाहता, कोई मरना नहीं चाहता, किन्तु ये सब होता है। इसी प्रकार लाभ, मान, जीवन आदि सभी कुछ कर्मों के अनुसार ही होता है।
सद्गुरू की बात को दिल में बिठा लो कि यही सत्य है।
ध्रुव जी ने यही किया और छः महीने में भगवद् प्राप्ति कर ली।
अगर हम ये समझ लें कि मेरे परिवार में जो अशान्ति है अथवा परिवार का कोई सदस्य मुझे तंग कर रहा है वो तो केवल निमित्त मात्र है, मेरे ही कर्मों का फल मेरे सामने आ रहा है तो यह सोच कर हमारे मन में शान्ति रहेगी व हम सभी से मीठा व्यवहार कर पायेंगे।
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