रविवार, 26 दिसंबर 2021

झगड़ा और शोर -1

आजकल घरों में छोटी-छोटी बातों पर झगड़े हो जाते हैं। इससे तनाव का महौल सा बन जाता है। थोड़ा विचार करें कि झगड़े होते क्यों हैं?

 झ्गड़ा होने का कारण है -- आध्यात्मिक ज्ञान की कमी का होना। आप कह सकते हैं  कि रोज गीता पढ़ने वाले, प्रवचन करने वाले, बहुत बखान करने वाले, आदि उनके भी तो झगड़े होते हैं।  वैसे गीता पढ़ना अथवा भाषण देना, प्रवचन करना अथवा अन्य कार्य करना, यह सब अलग बाते हैं । किन्तु साथ में ही प्रेक्टिकल जीवन होना वो एक अलग बात है। 

जिसने ध्रुव चरित्र पढ़ा हो अथवा श्रील भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज जी या श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज जी से ध्रुव चरित्र सुना हो, तो उसके दिल में यह बात घर कर जायेगी, कि जीव वही दुःख पाता है, जो उसने पहले किसी को दिया होता है। 

ध्रुव को उनकी माता जी व गुरू जी ने यही बात कही थी कि ध्रुव जो तू अपनी सौतेली माता के लिए यह सोच रहा है कि उसने मु्झे इतना कुछ सुना दिया, ताने कसे, मेरी बे-इज्जती कर दी, आदि तो यह समझ लो कि इसमें उनका कोई दोष नहीं है, क्योंकि तुमने भी पहले कभी किसी को ऐसा कष्ट दिया होगा या इतनी बे-इज्ज़ती करी होगी। हम जैसी क्रिया करेंगे, उसकी समजातीय प्रतिक्रिया होगी ही होगी। हम किसी को दुःख देंगे तो हमें दुःख मिलेगा ही मिलेगा।  To every action there is equal and opposite reaction. 

तुलसी दास जी ने भी लिखा कि चार वेद और दर्शन शास्त्र में लिखा है कि दूसरों को दुःख देने से आपको दुःख निश्चित रूप से मिलेंगे और अगर सुख देंगे तो आपको भी सुख ही मिलेंगे। ऐसा कभी नहीं होगा कि आप कांटेदार पेड़ बोयेंगे और उन पर मीठे फल लग जायेंगे।

ध्रुव ने कहा कि जहाँ तक मुझे याद है मैंने अपनी सौतेली माता को कभी दुःख नहीं दिया, उनकी कभी बे-इज्जती नहीं करी।

देवर्षि नारद जी न्स उत्तर में कहा -- बेटा! तुम्हारा केवल यही जन्म थोड़े ही है। कई जन्म तुम्हारे हो चुके हैं और उनमे कई अच्छे-बुरे कर्म तुमने किये हैं। भगवान को सब मालूम होता है। वे एक-एक कर्म का फल व हिसाब देते हैं।  देखो ध्रुव! अगर तुम अपनी सौतेली माता के प्रति यह भाव रखोगे कि बिना बात के उन्होंने मुझे गालियाँ दीं, ताने कसे, तो देख, साधना तो तू करेगा लेकिन भगवद् प्राप्ति नहीं होगी। अगर तू सिद्धि प्राप्त करना चाहता है तो अपनी सौतेली माता के प्रति द्वेष भाव को हटा दे। इस सच्चाई को जान, कि तूने ही कभी किसी को कष्ट दिया होगा अतः तुम्हें यह भोगने को मिला। सौतेली माता तो केवल निमित्त बनी, कारण तो तुम्हारे अपने ही कर्म हैं।  

अतः यह शिक्षा हम सब के लिए है कि हम जगह बदल लें, परिस्तिथी बदल सकते हैं किन्तु जो कर्म फल मिलना है, वो तो मिलेगा ही।



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