ये बात बिल्कुल सही है कि एकादशी का व्रत करने से भगवान श्रीहरि बड़े प्रसन्न होते हैं तथा वे मनुष्य का दुर्भाग्य, गरीबी व क्लेश समाप्त कर देते हैं परन्तु समझने वाली बात यह है कि जो भगवान श्रीहरि अपनी भक्ति से प्रसन्न होकर या हरि भक्ति के एक अंग एकादशी से प्रसन्न होकर हमारा दुर्भाग्य हमेशा-हमेशा के लिये मिटा सकते हैं;
किराये के मकान की जगह अपना मकान माँगना………………………………………………
हमें श्रीहनुमानजी की तरह हर समय अपनी सेवा का सौभाग्य दे सकते हैं;
अपना सखा बना सकते हैं;
यहाँ तक की अपने माता-पिता का अधिकार व मधुर रस तक का अधिकार प्रदान कर हमें सौभाग्यशाली बना सकते हैं;...................……………………………………………………………………
कक्षा में अच्छे नम्बरों से पास होने की दुआ माँगना,
किराये के मकान की जगह अपना मकान माँगना………………………………………………
कहां की समझदारी है?
जो भगवान सुदामा जी को बिना माँगे रातों-रात अतुलनीय सम्पदा का मालिक बना सकते हैं;
श्रीध्रुव को हमेशा के लिये अपने चरणों में स्थान दे सकते हैं;
भयानक विपत्ति से श्रीगजेन्द्र की,
श्रीमती द्रौपदी की,
व
यदि भगवान आपकी सुन ही रहे हैं या आप भगवान से प्रार्थना कर ही रहे हैं तो भगवान से उनकी अहैतुकी भक्ति माँगे, जिसके मिलने से सिर्फ आप ही नहीं, आपके सारे परिवार का वा आपका कई जन्मों के पिता-माताओं का नित्य कल्याण हो जायेगा।
अतः यदि आप एकादशी करते हैं तो भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभुजी की शिक्षाओं के अनुसार भगवान से एकादशी व्रत के बदले दुनियावी सौभाग्य, गरीबी हटाना इत्यादि प्रार्थना न करके उनकी नित्य-अहैतुकी भक्ति के लिये, अर्थात् हमेशा-हमेशा हम परम-आनन्द के साथ भगवान की विभिन्न प्रकार की सेवायें करते रहें, इस प्रकार की प्रार्थना करना।
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