मंगलवार, 8 सितंबर 2015

हर बीज में एक एक पेड़ समाया है

इस्कान संस्था के संस्थापक आचार्य श्रील ए सी भक्तिवेदान्त स्वामी महाराज जी ने एक बार हरिकथा में बताया कि एक बार नारद मुनि जी की एक ब्राह्मण से मुलाकात हुई। ब्राह्मण ने उनसे जाते हुये पूछा की अब आप कहाँ जा रहे हैं? मैं जानता हूँ कि आपकी भगवान से मुलाकात होती रहती है, अतः उनसे पूछियेगा कि मैं उनके पास कब आऊँगा? नारद जी ने कहा - अच्छा।

कुछ ही दूरी पर नारदजी को एक मोची मिला, जो कि एक बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर जूते सिल रहा था। बातों ही बातों में उसने भी नारदजी से वही बात कही जो ब्राह्मण ने कही थी।

नारदजी जब वैकुण्ठ लोक पहुँचे तो नारदजी ने भगवान नारायण से उन दोनों के बारे में पूछा। भगवान नारायण ने कहा - वो मोची तो इसी जन्म के बाद मेरे पास आ जायेगा, किन्तु उस ब्राह्मण को अभी बहुन जन्म लेने पड़ेंगे।

नारदजी ने हैरानी से कहा - मैं इस बात का रहस्य समझा नहीं।

भगवान मुस्कुराये और बोले - जब आप उनसे मिलेंगे तो आप उनको यह जरूर बोलना की मैं सुई के छेद में से हाथी को निकाल रहा था।
जब नारद जी पृथ्वी पर लौटे तो पहले ब्राह्मण से मिलने गये। ब्राह्मण ने उनका स्वागत किया और पूछा की जब आप वैकुण्ठ में गये तो भगवान क्या कर रहे थे? नारद जी ने कहा - भगवान सुई के छेद में से हाथी को निकाल रहे थे।

ब्राह्मण ने कहा - मैं ऐसी अविश्वासी बातों पर विश्वास नहीं करता। 

नारदजी को समझते देर नहीं लगी कि इस आदमी की भगवान में तनिक भी श्रद्धा नहीं है। इसे केवल कोरा किताबी ज्ञान है।

फिर नारदजी मोची के पास गये। मोची ने भी वही प्रश्न किया जिसका नारदजी ने वही उत्तर दिया की भगवान सुई के छेद में से हाथी को निकाल रहे थे।

मोची यह सुनते ही रोने लगा। उसकी आँखों में आँसू आ गये और वह बोला - हे मेरे प्रभु! आप कितने विचित्र हैं। आप सब कुछ कर सकते हैं। 

नारदजी ने पूछा - क्या आपको विश्वास है की भगवान सुई के छेद में से हाथी को निकाल सकते हैं?
मोची ने कहा - क्यों नहीं? मुझे पूरा विश्वास है। आप देख रहे हैं कि मैं इस बरगद के पेड़ के नीचे बैठा हूँ और उसमें से नित्य अनेक फल गिरते हैं। और उन फलों के हर बीज में इस बड़े वृक्ष की ही तरह एक बरगद का वृक्ष समाया हुआ है। यदि एक छोटे से बीज के भीतर इतना बड़ा वृक्ष समाया रह सकता है तो फिए भगवान द्वारा एक सुई के छेद से हाथी को निकालना कोई कठिन काम कैसे हो सकता है?

इसे श्रद्धा कहते हैं। यह अन्ध-विश्वास नहीं है। विश्वास के पीछे कारण होता है। यदि भगवान
इतने नन्हें नन्हें बीजों के भीतर एक एक विशाल वृक्ष भर सकते हैं तो उनके लिये अपनी शक्ति के द्वारा सारे लोकों को अन्तरिक्ष में तैरते रखना कौन सी बड़ी बात है?

श्रीमद् भगवद् गीता  (9।10) में भगवान श्रीकृष्ण बताते हैं - यह भौतिक प्रकृति मेरे निर्देशन में कार्य कर रही है और समस्त चर तथा अचर प्राणियों को उत्पन्न कर रही है। उसी के नियमानुसार यह दृश्य जगत पुनः पुनः उत्पन्न और विनष्ट होता है।
अब यदि भगवान का हाथ उसके पीछे न रहे तो प्रकृति इतने आश्चर्यजनक ढंग से कार्य नहीं कर सकती।

हम ऐसा एक उदाहरण प्रस्तुत नहीं कर सकते जिसमें भौतिक वस्तुयें स्वतः कार्यशील हो रही हों। पदार्थ निष्क्रिय होता है और बिना ईश्वरीय स्पर्श के उसका कार्यशील होने की कोई सम्भावना नहीं है।

भले ही मशीनों को अत्यन्त विस्मयजनक ढंग से क्यों न निर्मित किया जाये, किन्तु जब तक मनुष्य उसे स्पर्श नहीं करता, वह कार्य नहीं कर सकतीं।

और यह मनुष्य क्या है? एक आध्यात्मिक स्फुलिंग। अर्थात् भगवान की शक्ति का अंश्।

अर्थात् भक्ति राज्य में विश्वास से ही आगे बढ़ा जा सकता है। क्योंकि इन्द्रियाँ, मन, बुद्धि सांसारिक होने के कारण भगवान तक नहीं पहुँच पातीं।

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