



गरज़ते हुए स्वर में आपने पूछा -- ' कौन हो तुम? क्या चाहते हो?'
आवाज़ आयी -- ' मैं तुम्हें खा जाऊँगा।'
महाराज जी ने कहा -- 'मैं ब्राह्मण हूँ । ब्रह्म-हत्या करने से डर नहीं लगता तुम्हें।'
---------------------- 'मुझे क्या डर?'
'पहले जो तुमने पाप किये, या आत्महत्या की उसके कारण तुम्हारी यह गति हुई। अब ब्रह्म-हत्या करने से जानते हो क्या होगा …………मैं तुम्हारा कल्याण कर सकता हूँ ।'
अब आवाज़ में काफी नरमी थी।

महाराज जी ने पूछा -- ' क्या करने से तुम्हारा कष्ट जायेगा?
.......'एक एकादशी का फल भी अगर मुझे मिल जाये, तो मैं इस योनि से मुक्त हो जाऊँगा ।'…
महाराज जी ने कहा -- 'चिन्ता की कोई बात नहीं। आज एकादशी है, मैं सारी रात हरिनाम करूँगा । तुम हरिनाम सुनो। '
प्रातः काल होने पर महाराज जी ने दाहिने हाथ की हथेली में जल लिया और संकल्प मन्त्र पढ़कर एकादशी का फल उस घर की मालकिन के निमित्त प्रदान कर दिया।

सारे दिन की थकान, पूरी रात हरिनाम करने के बाद महाराज जी विश्राम करने लगे।
इधर गाँव में प्रातः काल जब ये चर्चा लोगों को पता लगी की पान वाले ने किसी महात्मा को भूत हवेली में ठहरा दिया है तो सारे चिन्तित हो गये । सभी को यह विश्वास था कि पहले की तरह भूत ने इस महात्मा को भी मार दिया होगा और पान वाले को भला-बुरा कहने लगे। साथ ही लोगों को यह भी डर था कि वे राज-गुरु हैं, उन्हें कुछ होने से राजा हमें दण्ड देंगे ।
बहुत सी बातचीत के बाद ये निर्णय लिया गया कि पहले हवेली में जाया जाय और देखा जाय। यदि कोई अशुभ घटना घटी है तो हम पान वाले को आगे करके, क्षमा माँगते हुए राजा को सारी बात बता देंगे।
दरवाज़ा खटखटाया गया। अन्दर से कोई आवाज़ न आती देख, सभी अनहोनी घटना को सोच कर घबरा गये। परन्तु लगातार दरवाज़ा खटखटाने से अन्दर से उच्च स्वर में हरिनाम की आवाज़ आयी और महात्मा ने दरवाज़ा खोला।
महात्मा को जीवित देख कर सभी की जान में जान आई। उन्होंने राजगुरु जी को पूछा -- 'आप ठीक ठाक हैं? रात को कोई असुविधा तो नहीं हुई ?'

सभी राजगुरु से पिशाच के उद्धार की बात सुन कर हैरान हो गये और श्रद्धा से उन्हें प्रणाम करने लगे।
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