एक वेद को जिन्होंने 100 शाखाओं वाले चार भागों में विभाजित किया था, वे वेद-व्यास के नाम से जाने जाते हैं।
आप साधारणतया माठर, द्वैपायन, पाराशर्य, कानीन, बादरायण, व्यास, कृष्णद्वैपायन, सत्यभारत, पाराशरी, सत्यव्रत, सत्यवती-सुत एवं सत्यारत के नाम से भी जाने जाते हैं।
आपके आविर्भाव की कथा इस प्रकार से है - एक बार पराशर मुनि तीर्थयात्रा पर थे। चलते-चलते आप यमुनाजी के किनार पहुँचे। यमुना को पार करने के लिए उन्होंने एक नाविक से सहायता माँगी। व्यस्त होने के कारण उसने अपनी कन्या मत्स्यगंधा को यमुना पार कराने के लिये कहा।
पिता के आदेशानुसार मत्स्यगंधा नौका चलाते हुये जब यमुनाजी पार कराने लगी दैववश पराशर मुनि मत्स्यागंधा की पितृ-भक्ति देख प्रसन्न हो गये। मत्स्यगंधा के शरीर से मछली कि गंध आती थी, जिसके कारण उसका नाम मत्स्यगंधा था। पराशर मुनि ने कृपा करके उसको सुन्दर बदन वाली कर दिया और उसके शरीर से कस्तूरी की गन्ध आने लगी। मत्स्यगंधा अब कस्तूरी की गंध वाली हो गयी। मत्स्यगंधा की इच्छा से पराशर मुनि ने उसको पुत्र उत्पत्ति का वरदान दिया व यह भी कहा की पुत्र उत्पन्न होने पर भी वो कन्या ही रहेगी और उसका पुत्र पराशर मुनि के समान ही तेजस्वी व गुणी होगा। और उसके शरीर की यह सुगन्ध सदा बनी रहेगी।
शुभ-मुहूर्त में मत्स्यगंधा (सत्यवती) के यहाँ श्रीकृष्णद्वैपायन वेदव्यास मुनि आविर्भूत हुये।
जन्म ग्रहण करते ही वेद-व्यास मुनि ने अपनी माता को घर जाने के लिये
अनुरोध किया और कहा कि जब भी वे आपको स्मरण करेंगी, आप तुरन्त उपस्थित हो जायेंगे। जन्म ग्रहण करते ही श्रीवेद-व्यास मुनि तपस्या के लिये चले गये थे।
क्या कोई साधारण बालक जन्म लेने के साथ-साथ ही तपस्या के लिये जा सकता है या ऐसी कोई बात माता से कह सकता है?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें