शुक्रवार, 23 अगस्त 2013

श्री शिव जी

श्रीशिव के बारे में समझना सरल नहीं है । ब्रह्मा जी के बारे में समझना सरल है। ब्रह्मा जी एक जीव हैं, सीमित इन्द्रियों वाले। जब कभी कोई उपयुक्त पात्र नहीं मिलता तो श्रीविष्णु (भगवान कृष्ण के विस्तार), स्वयं ब्रह्मा की गद्दी पर बैठते हैं, परन्तु ऐसा कभी कभी होता है। श्री शिव के साथ ऐसा नहीं है ।
 
भौतिक जगत की आठ सतहों को पार कर, विरजा आती है जो भौतिक व आध्यात्मिक जगत को बांटती है। उसको पार कर श्रीशिव का लोक आता है, जहाँ वे श्री सदाशिव के नाम से जाने जाते हैं, जो कि श्रीविष्णु का ही एक रूप हैं ।
 

शिव-तत्त्व को समझने के लिये दूध व दही का उदहारण देना होगा। दही, दूध का ही एक रूप है। दूध दही बन सकता है परन्तु दही दूध नहीं बन सकता। किसी विशेष कार्य के लिये श्रीकृष्ण, श्रीशिव का रुप लेते हैं। वास्तव में यह उदाहरण मात्र समझाने के लिये है । श्रीकृष्ण में कोई विकृति नहीं आती,  वे वैसे ही रहते हैं, जैसे वे हैं।       - श्रील भक्तिवेदान्त नारायण महाराज 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें