श्रील रूप गोस्वामी - श्री व्रजेन्द्रनन्दन श्री गोविन्द जी के विग्रह का सेवा प्रकाश किस प्रकार होगा, इस चिन्ता में श्रीरूप गोस्वामी श्रीव्रज मण्डल में श्रीगोविन्द देव जी की खोज के लिये गाँव - गाँव और वन - वन में फिरे थे। योग - पीठ में, भगवान की मौजूदगी शास्त्र में लिखी है। ब्रज-वासियों के घर-घर में खोजने पर भी कहीं भी गोविन्द देव का दर्शन ना पाकर, धैर्य खोकर एक दिन आप यमुना के किनारे विरह से व्याकुल हृदय से बैठे थे कि ऐसे समय में व्रजवासी का रूप धारण कर के एक व्यक्ति उनके निकट आ उपस्थित हुया। उस व्रजवासी ने बहुत मिठी वाणी में रूप गोस्वामी के दुःख का कारण पूछा । रूप गोस्वामी जी ने उनके रूप और वचनों से आकृष्ट
होकर हृदय की सारी बात उसके आगे निवेदन कर दी। व्रजवासी रूप गोस्वामी को सान्त्वना देकर बोला, 'चिन्ता का कोई कारण नहीं। वृन्दावन के गोमटीला नामक योगपीठ में गोविन्द देव गुप्त रूप से रहते हैं। एक सुलक्षणा गाय प्रतिदिन पूर्वाह्ण के समय, उल्लास से भर कर वहाँ दूध देती है ।' यह कह कर व्रजवासी अन्तर्धान हो गया। 'कृष्ण आये थे, मैं पहचान न पाया' , यह सोच कर रूप गोस्वामी जी मूर्च्छित हो गये। अन्ततः श्रील रूप गोस्वामी जी ने किसी प्रकार विरह दुःख को संवरण करके व्रजवासियों को गोविन्द देव जी के प्रकट होने के स्थान की बात बताई। व्रजवासियों ने परम उल्लास के साथ गोमाटीला की भूमि की खुदाई की, और वहाँ से करोड़ों कामदेवों को मोहित करने वाले व्रजेन्द्र नन्दन श्री गोविन्द देव जी का आविर्भाव हुआ। कहा जाता है कि श्रीगोविन्द देव जी के श्रीविग्रह को श्रीकृष्ण के पोते श्रीव्रजनाभ ने प्रकट किया था। गोमाटीला में गोविन्द देव जी के पुनः प्रकट होने पर पहिले पर्णकुटि (पत्तों की झोंपड़ी) में उनकी सेवा होती थी। बाद में श्रीरघुनाथ भट्ट गोस्वामी के शिष्यों ने गोविन्द देव जी के मन्दिर और बरामदे आदि का निर्माण किया था।
होकर हृदय की सारी बात उसके आगे निवेदन कर दी। व्रजवासी रूप गोस्वामी को सान्त्वना देकर बोला, 'चिन्ता का कोई कारण नहीं। वृन्दावन के गोमटीला नामक योगपीठ में गोविन्द देव गुप्त रूप से रहते हैं। एक सुलक्षणा गाय प्रतिदिन पूर्वाह्ण के समय, उल्लास से भर कर वहाँ दूध देती है ।' यह कह कर व्रजवासी अन्तर्धान हो गया। 'कृष्ण आये थे, मैं पहचान न पाया' , यह सोच कर रूप गोस्वामी जी मूर्च्छित हो गये। अन्ततः श्रील रूप गोस्वामी जी ने किसी प्रकार विरह दुःख को संवरण करके व्रजवासियों को गोविन्द देव जी के प्रकट होने के स्थान की बात बताई। व्रजवासियों ने परम उल्लास के साथ गोमाटीला की भूमि की खुदाई की, और वहाँ से करोड़ों कामदेवों को मोहित करने वाले व्रजेन्द्र नन्दन श्री गोविन्द देव जी का आविर्भाव हुआ। कहा जाता है कि श्रीगोविन्द देव जी के श्रीविग्रह को श्रीकृष्ण के पोते श्रीव्रजनाभ ने प्रकट किया था। गोमाटीला में गोविन्द देव जी के पुनः प्रकट होने पर पहिले पर्णकुटि (पत्तों की झोंपड़ी) में उनकी सेवा होती थी। बाद में श्रीरघुनाथ भट्ट गोस्वामी के शिष्यों ने गोविन्द देव जी के मन्दिर और बरामदे आदि का निर्माण किया था।

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