श्रील गौरीदास पण्डित - भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु जी ने जिस समय हरिनदी ग्राम से नौका की पतवार (चप्पू) चला कर अम्बिका में गौरीदास पण्डित के घर शुभागमन करते हुये इमली के वृक्ष के नीचे आसन ग्रहण किया था, तब गौरीदास पण्डित जी ने श्रीमन्महाप्रभु से वहाँ चिरदिन ठहरने के लिये प्रार्थना की थी। भक्त की इच्छा पूरी करने के लिये सामने के नीम के वृक्ष की लकड़ी से श्रीमन्महाप्रभु ने अपने और श्रीमन् नित्यानन्द प्रभु के दो विग्रह प्रकट किये और यह भी सुना जाता है कि श्रीविग्रह के निर्माण से समय श्रीमन् नित्यानन्द प्रभु भी वहाँ साक्षात् भाव से उपस्थित थे। गौरीदास पण्डित की अनन्यनिष्ठा शुद्धा भक्ति से वशीभूत होकर उनके द्वारा दिये हुये पदार्थों को श्रीगौर-नित्यानन्द के विग्रहों ने साक्षात् भाव से भोजन भी किया था। श्रीगौरांग महाप्रभु और श्रीनित्यानन्द प्रभु के वहाँ से चले जाने के लिये उद्यत होने पर, गौरीदास पण्डित ने विरह व्याकुल मन से उनके जाने में बाधा उत्पन्न की तो श्रीमन्महाप्रभु जी गौरीदास पण्डित को दिलासा देते हुये बोले, 'हम साक्षात् भाव से तथा विग्रह रूप में प्रकटित हैं। इन दोनों युगलों में से जिस युगल को तुम ठहरने के लिये बोलोगे, वही युगल ठहरेगा और दूसरा चला जायेगा।' इस पर गौरीदास पण्डित ने विग्रह युगल को जाने के लिये कहा और उन दोनों को ठहरने के लिये कहा। श्रील गौरीदास पण्डित की इच्छापूर्ति के लिये विग्रह युगल चले गये तथा श्रीगौर-नित्यानन्द श्रीमन्दिर में विराजमान रहे।

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