सोमवार, 26 अक्तूबर 2020

आपने हाथ की छड़ी को हरा-भरा पेड़ बना दिया ।

 

एक बार बचपन में आप ने अपने पिताजी से कहा की  श्रीशंकराचार्य जी द्वारा स्थापित यह विचार की जीव ही ब्रह्म है तथा भगवान निराकार-निर्विशेष हैं, बिल्कुल गलत है । मैं, श्रीशंकराचार्य जी द्वारा स्थापित इस मायावाद के मत का खण्डन करूँगा।

आपके पिताजी, ज्यादा वृद्ध होने के कारण, हाथ में छड़ी लेकर चलते थे।

उन्होंने कहा, ' बेटा ! श्रीशंकराचार्य जी का सिद्धान्त पूरे भारत में फैला हुआ है, और उसका सब सम्मान करते हैं। उनका सिद्धान्त कोई खण्डित कर दे, ऐसा योग्य व्यक्ति कोई नज़र में नहीं आता। जैसे मेरे हाथ की छड़ी, हरा-भरा पेड़ नहीं बन सकती, उसी प्रकार श्रीशंकराचार्य जी के सिद्धान्त को कोई काट नहीं सकता।'

आपने साथ - साथ ही कहा, ' हे पिताजी, यदि कोई आपके हाथ की छड़ी को वृक्ष में बदल दे, तो क्या आप मान लेंगे की श्रीशंकराचार्य जी के सिद्धान्त को काटा जा सकता है?'

पिताजी को कुछ न बोलता देख, आपने पिताजी से उनकी छड़ी माँग ली।

पिताजी ने आपको वो छड़ी पकड़ा दी।

आपने वो छड़ी बाहर आँगन में ज़मीन में गाड़ दी ।

आप ने कहा, ' हे छड़ी, अगर मैं श्रीशंकराचार्य जी के मत को खण्डित कर दूँगा तो तुम अभी हरे-भरे पेड़ के रूप में परिवर्तित हो जाओ।'
आप दोनों के देखते ही देखते, वो छड़ी बढ़ने लगी। उसका तना मोटा होता गया, पत्ते आने लगे, फल भी लग गये। कुछ ही समय में वहाँ छड़ी के स्थान पर एक हरा-भरा वृक्ष था।

आपके पिताजी ने यह देख कर आपको अपने समीप बुलाया, व पीठ थपथपाते हुए कहा,' हाँ, श्रीशंकराचार्य जी द्वारा स्थापित मायावाद का खण्डन अब सम्भव लगता है।' आपके पिताजी ने मान लिया की उनका पुत्र साधारण मनुष्य नहीं है। 

आगे चल कर आपने मायावाद को काटने के लिये उसमें 100 दोष गिनाये व 'मायावाद-शतदूषणी' नामक ग्रन्थ भी लिखा।
आपके पिताजी का नाम श्रीमध्वगेह भट्ट, व माताजी का नाम श्रीमती वेदविद्या था। आप श्रीरामचन्द्र जी के विजयोत्सव अर्थात् दशहरा के दिन प्रकट् हुए थे।

आपने 12 वर्ष की आयु में ही संन्यास ग्रहण कर लिया था।
पवन (वायु) देव के प्रथम अवतार थे श्रीहनुमान, द्वितीय अवतार थे श्रीभीमसेन, व तृतीय अवतार हुए आप, अर्थात श्रीमध्वाचार्यजी।

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