मंगलवार, 27 अक्तूबर 2020

कार्तिक मास

 कार्तिक मास में प्रतिदिन दामोदर-अष्टकम का पाठ करते हैं। साथ ही श्रीमद् भागवतम में गज और ग्राह की कथा का पाठ करते हैं। उसमें जो श्लोक हैं उन्हें अवश्य ही पढ़ना चाहिये। वे संस्कृत में हैं। तो भी पढ़ना चाहिये, भगवान तो भावग्राही हैं, वे आपके भाव को समझ जायेंगे।  साथ में जो अर्थ व टीका है वो किसी वैष्णव आचार्य द्वारा लिखित होनी चाहिये। इस्कान के परमाराध्यतम् श्रील ए सी भक्तिवेदान्त स्वामी महाराज अथवा परमपूज्यपाद श्रील भक्तिवेदान्त नारायण महाराज द्वारा दी गयी टीकायें पढ़ सकते हैं। वैसे तो महान वैष्णव आचार्य श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर द्वारा लिखी गयी टीका भी है, किन्तु वो संस्कृत में है।


परमपूज्यपाद श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी, गुरु महाराज जी कहते हैं कि यह जो ग्राह है, वो माया है। और यह जो गजेन्द्र है, वो एक प्राणी अथवा जीव है। जीव को माया रूपी ग्राह ने पकड़ा हुआ है। जीव रूपी हाथी अपने आप को मगरमच्छ से छुड़ाने की कोशिश करता है। उसके बच्चे, अन्य प्राणी भी उसकी सहायता करते हैं, किन्तु असफल रहते हैं।  कुछ होता न देख, जीव फिर अकेला ही जूझता है। हम चाहे जितनी भी कोशिश कर लें, भगवान की माया से नहीं छूट सकते। श्रीमद् भगवद् गीता में भगवान कहते हैं - मेरी शरण में आ जाओ। जैसे ही गजेनद्र ने भगवान की शरण ली, भगवान ने उसे बचा लिया। गज ग्राह के चन्गुल से बच गया।

इस भावना से की मैं एक सांसारिक जीव  माया में फंस गया हूँ, हे भगवन्! मैं आपके चरणों में शरणागत होना चाहता हूँ................हमें गजेन्द्र-मोक्षा लीला रोज़ पढ़नी चाहिये।



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