श्रीगीता के वक्ता कौन हैं?
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि पूरी दुनिया क पिता मैं हूँ, माता भी मैं ही हूँ। लालन करने वाली माता, पालन करने वाला पिता मैं ही हूँ। इस संसार का आश्रय है, तो वो भी मैं ही हूँ। इस संसार का पितामह भी मैं ही हूँ। मेरा कोई कारण नहीं है। मैं सब कुछ जानने योग्य हूँ। मैं ही ॐकार हूँ, सारे वेद भी मैं ही हूँ।
अगर इसके बाद भी कोई भगवान को लेकर संशय रखता है तो उसे श्रीगीता पढ़ने का कोई फायदा नहीं है। श्रीगीता पढ़ने का अर्थ है गीता की बात को मानना। जैसे कोई कहे कि मैं अपने पिताजी को बहुत मानता हूँ किन्तु उनकी बात नहीं मानता हूँ। तो क्या यह पिताजी को मानना हुआ? पिताजी को मानने का अर्थ है, उनकी बात को मानना।
दुनिया में जितने भी यज्ञ हैं उनका एकमात्र भोक्ता मैं ही हूँ। -- श्रीकृष्ण
भगवान यह भी बताते हैं कि ये देवता तो मुझ से प्रकट हुए हैं, मैं ही सबका कारण हूँ अतः ये मुझे नहीं भी जान सकते।
जो मुझे अजन्मा, अनादि, समस्त का कारण मानता है, केवल वह व्यक्ति ही संसार से मुक्त हो सकता है। उसे ही श्रीगीता समझ में आ सकती है।
अर्जुन के भगवद् गीता समझ में आई क्योंकि अर्जुन ने कहा कि हे कृष्ण! आप ने मुझ से जो कहा मैं उसे पूर्णतयः सत्य मानता हूँ।
तो श्रीगीता को समझने के लिए हमें भगवान की बात पर विश्वास करना होगा। यह बात समझ लेनी पड़ेगी कि श्रीकृष्ण ही परब्रह्म हैं, इस बात को जान लेने के बाद ही श्रीभगवद् गीता पढ़ना प्रारम्भ होता है।
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