श्रीगीता कि बातें समझ में जब आयेंगी जब हम श्रीकृष्ण को जान जायेंगे।
दुनिया में भी देखा जाता है कि हम उसी व्यक्ति की बात पर ज्यादा ध्यान देते हैं, जिसको हम कुछ समझते हैं। जिन्हें हम कुछ समझते ही नहीं हैं, उनकी बात पर हम कुछ ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं। वो व्यक्ति जितना ज्यादा हमारे लिए महत्वपूर्ण है, उसकी बात हम उतनी अधिक मानते हैं। भगवान श्रीकृष्ण की बात पर हम ध्यान देंगे, अगर हमको श्रीकृष्ण की value पूरी तरह पता हो तो। श्रीकृष्ण की बात पर हमें विश्वास तब होगा जब हम इस शाश्वत सत्य का अनुभव करेंगे कि श्रीकृष्ण एक साधारण मानव नहीं बल्कि भगवान हैं। वे सभी कारणों के कारण हैं। उदहारण के लिए दो व्यक्ति बार कर रहे थे --
पहला व्यक्ति -- यह जो हम सांस लेते हैं उसके लिए वायु कहाँ से आ रही है?
दूसरा व्यक्ति -- प्रकृति से।
पहला -- ये जो रोटी खा रहे हो, फल खा रहे हो, ये कहाँ से आ रहा है?
दूसरा -- प्रकृति से।
पहला -- ये जो पानी पी रहे हो, शरीर में 70% से भी अधिक मात्रा में जो है, वह कहाँ से आ रहा है?
दूसरा - प्रकृति से।
अगर कोई पूछे कि यह जो प्रकृति है, यह किसकी है, किसकी शक्ति यह सारा काम कर रही है………………………?
भगवान श्रीकृष्ण, श्रीगीता के नौवें अध्याय में बताते हैं कि जितने दुनिया में प्राणी हैं, सारे प्राणी मेरी प्रकृति में प्रवेश करते हैं व बाद में मैं ही उन्हें पुनः सृजन करता हूँ। मैं ही प्रकृति का स्वामी हूँ।
जब तक भगवान हमें नहीं बतायेंगे कि वे कौन हैं अथवा जब तक हमारा अपना उनके बारे में अनुभव न हो जाये, तब ही हमें उनके बारे में पता चलेगा।
अतः जिस प्रकृति से हमारा खाना-पीना, जिंदा रहना आदि चल रहा है, भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि वो मेरी है।
'हे कुन्तिपु्त्र ! ये जो भौतिक प्रकृति है, यह मेरी अनेक शक्तियों में से एक है व मेरी अध्यक्षता में कार्य करती है। '
श्रीगीता हमारे हर प्रश्न का जवाब देती है।
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि मूर्ख लोग मुझे समझते ही नहीं हैं। वे मेरे दिव्य स्वभाव को नहीं जानते। मैं जो सारे प्राणियों का ईश्वर हूँ, यह वे नहीं जानते।
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