शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2020

श्रीमद् भगवद् गीता - 5

श्रीभगवद् गीता को समझने के लिए इस बात को स्वीकर करना पड़ेगा कि श्रीकृष्ण भगवान हैं। 

श्रीकृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि जब-जब धर्म की ग्लानि होने लगती है, आत्म धर्म ह्रास होने लगता है, अधर्म बढ़ने लगता है तो भगवद्भक्तों के परित्राण के लिए और दुष्टों के संहार लिए युग-युग में मैं अवतरित होता हूँ। मेरा अवतरण दुनिया के साधारण मनुष्यों सा नहीं होता। मेरा जन्म भी दिव्य है और कर्म भी। देखो न भगवान श्रीकृष्ण कंस के कारागार में रोते हुए पैदा नहीं हुए। शास्त्रों में वर्णित है कि श्रीदेवकि-वसुदेव की आँखें चौँधिया गयी थीं प्रकाश देखकर, फिर देखा प्रकाश के बीचोबीच शंख-चक्र-पद्म-गदा लिए भगवान विराजमान हैं। दोनों ने उनकी स्तुति करी और कहा कि हमने तो आपको पुत्र रूप में चाहा था। भगवान ने कहा कि मैं अभी पुत्र रूप में हो जाता हूँ। आपके हृदय में जो कंस का डर था उसे दूर करने के लिए ही मैं इस रूप में आया। भगवान श्रीराम माता कौशल्या देवी के आगे प्रकट हुए तो वे भी चतुर्भुज रूप में ही प्रकट हुए। ये दिखाने के लिए कि मैं साधारण मनुष्य नहीं हूँ। फिर भी कोई मोटी बुद्धि वाला यह प्रश्न करे कि भगवान को भी माता-पिता चाहिए तो प्रह्लाद जी के कहने पर भगवान खम्बे में से ही प्रकट हो गये। फिर भगवान श्रीकृष्ण ने बताया कि निराकारवादी जिस ब्रह्म की उपासना करता, उसका कारण भी मैं ही हूँ। यह जो सारा संसार है,  ये सारा संसार मेरी माया से बना हुआ है। श्रीगीता में अनेक बातों से पता चलता है कि श्रीकृष्ण साधारण मनुष्य नहीं, भगवान हैं। 

श्रीमद् भगवद् गीता के 18वें अध्याय में जहाँ पर अर्जुन को सारा ज्ञान दे दिया, वहाँ पर उन्होंने कहा कि सारा रहस्य मैंने आपको बता दिया, अब जो मन कहता है वो करो।

भगवान ने फिर कहा कि जो सबसे गोपनीय है, अब वो सुनो! श्रीकृष्ण ने जो कहा उसे सुनने बाद अर्जुन ने कहा, हे प्रभु! मेरा सारा मोह नष्ट हो गया। मेरे सारे सन्देह चले गए।

इन सबसे पता चलता है कि श्रीकृष्ण साधारण मनुष्य नहीं हैं। फिर श्रीगीता में श्रीकृष्ण के विराट रूप का भी वर्णन है। अतः श्रीमद् भगवद् गीता को समझने के लिए, यह विश्वास बनाना होगा कि श्रीकृष्ण ही भगवान हैं।

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