सोमवार, 5 अक्तूबर 2020

श्रीमद् भगवद् गीता - 4

श्रीगीता की कुछ मुख्य बातों में से … 


यह एक ऐसा ग्रन्थ है जिसके उपदेश, किसी दुनियावी व्यक्ति अथवा ॠषी ने नहीं दिये। 


यह एक ऐसा ग्रन्थ है जिसमें हर स्वाल का जवाब परब्रह्म भगवान श्रीकृष्ण ने दिए हैं।


श्रीगीता में एक श्लोक धृतराष्ट्र ने बोला है। वहाँ का वर्णन किया श्रीसंजय ने जो धृतराष्ट्र जी के मन्त्री हैं। उन्होंने 41 श्लोक कहे। अपने दिल के प्रश्नों अथवा बातों को पूछते हुए श्रीअर्जुन ने 84 श्लोक बोले हैं।  बाकी के सभी श्लोक श्रीकृष्ण ने कहे हैं, 574 श्लोकों में, यह सब 45 मिनट में कहा गया।


यह ग्रन्थ स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने हमें प्रदान किया है।


एक और बात कि जहाँ पर धृतराष्ट ने कुछ कहा तो लिखा है धृतराष्ट्र उवाच्……


अगर श्रीसंजय ने कुछ कहा तो वहाँ पर लिखा है संजय उवाच्……


जहाँ पर अर्जुन कुछ बोल रहे हैं तो श्लोक से पहले लिखा है……अर्जुन उवाच्…


परन्तु जहाँ पर श्रीकृष्ण कुछ बोल रहे हैं तो वहाँ पर श्रीकृष्ण उवाच नहीं लिखा हुआ अथवा देवकीनन्दन उवाच् नहीं लिखा हुआ अथवा वसुदेव-नन्दन उवाच् नहीं लिखा, वहाँ पर लिखा है - श्रीभगवान उवाच्।


यानिकि अगर श्रीगीता को हमें समझ्ना है तो सबसे पहले हमें यह समझना होगा कि श्रीकृष्ण कोई साधारण मनुष्य नहीं है, कोई साधारण ज्ञानी नहीं हैं, कोई साधारण अथवा असाधारण देवता नहीं है, बल्कि स्वयं भगवान हैं। 


भगवान अर्थात सर्वशक्तिमान्।


श्रीगीता की मुख्य बातों में से एक विशेष बात यह है कि श्रीमद् भगवद् गीता को समझने के लिए हमें श्रीकृष्ण को भगवान मानना होगा और यह विश्वास करना होगा कि यही सत्य है, क्योंकि यही सत्य है कि श्रीकृष्ण स्वयं भगवान हैं । 


श्रीगीता में ही यह प्रमाण आपको कई जगहों पर मिल जाएगा कि श्रीकृष्ण ही भगवान हैं। 


जैसे -- श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कहा………यह जो गीता का दिव्य ज्ञान है, यह मैंने सबसे पहले सूर्य को दिया था.……मेरा जन्म-कर्म तो दुनिया के लोगों की तरह नहीं है, बल्कि दिव्य है।


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