मंगलवार, 1 सितंबर 2020

प्रेरक प्रसंग 5 ----- अच्छे महात्मा की पहचान

चण्डीगढ़ में श्रील भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज विष्णुपाद जी की एक शिष्या रहती थीं, नाम था श्रीमती विमला माता जी। 

सैक्टर 20बी में जब श्रीचैतन्य गौड़ीय मठ बना तो वहाँ पर वो आना-जाना करने लगीं। सरल स्वभाव की माता जी थीं। उन्होंने देखा कि यहाँ के महात्मा लोग तुलसी जी में जल देते हैं, तुलसी जी की परिक्रमा करते हैं। एक दिन उन्हें एक बगीचे में तुलसी जी का बड़ा सा पौधा दिखाई दिया। उन्होंने सोचा कि मठ में महात्मा लोग तुलसी जी की सेवा करते ही हैं तो मैं यह पौधा ले जाती हूँ। श्रील गुरू महाराज जी आज कल आये हुए हैं, खुश हो जायेंगे देखकर। ऐसा सोचकर उन्होंने 2-3 आदमियों की सहायता से उस पौधे को उखाड़ा। इतना बड़ा था कि अकेला आदमी उसे उठा कर भी नहीं ले जा सकता था। लोगों ने मिलकर उखाड़ तो दिया किन्तु ले जाने के लिए तैयार नहीं हुए। 

माता जी ने उस पौधे को जड़ों से पकड़ा और सारा रास्ता घसीटते हुए मठ में ले आई। अपने गुरूदेव जी के कमरे का दरवाज़ा खटखटाया। श्रील माधव महाराज जी ने दरवाज़ा खोला तो उसने प्रणाम करते हुए कहा - गुरू महाराज ! आप तुलसी जी की सेवा करते हैं, मैं आपके लिए तुलसी का पौधा लेकर आई हूँ।

महाराज जी बाहर आये और देखा कि ज़मीन पर घसीटने के निशान पड़े हैं और तुलसी का विशाल पौधा भी पड़ा है। वे सारी बात समझ गये।

अच्छा गुरू, बड़े ही ढंग से स्थिति को संभालते हैं। उन्होंने कहा -- अच्छा ! अच्छा! आप तुलसी का पौधा लाई हैं!

(महाराज जी ने अपनी शिष्या को डांटा नहीं कि तुलसी के पौधे को इस तरह नहीं लाते हैं। उन्होंने अपने एक शिष्य को बुलाया व कहा कि इन माता जी को कुछ नहीं कहना, एक क्यारी बनाओ और इस तुलसी के पौधे को वहाँ पर लगा दो। इन माता जी का अपराध खंडन हो जाये, इसके लिए इन माताजी की भी सहायता लेना इस पौधे को लगाने में। उनसे इसमें पानी डलवाना, इनसे प्रणाम करवाना। ) 

ज़रा सोचिए कि यदि उस समय उन माताजी को डांट दिया जाता कि आपको पता नहीं है क्या……………कि तुलसी जी को ऐसे नहीं लाया जाता है, आदि………………तो उन माता जी हृदय टूट जाना था…………… क्योंकि वो सरल माताजी बहुत उत्साह से तुलसी जी को लाई थीं। 

श्रील माधव महाराज जी ने बहुत युक्तिपूर्ण ढंग से उन माता जी के भाव को देखा कि वो तो यह देखकर कि महात्मा लोग तुलसी जी की सेवा करते हैं, उनके लिए मैं तुलसी जी का पौधा ले जाऊँगी इससे महात्माओं को बहुत सुख होगा। अतः जो अच्छे महात्मा होते हैं वो सामने वाले की गल्ती को सहन करते हैं व बड़े तरीके से उसे भजन में लगा कर रखते हैं।

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