मंगलवार, 8 सितंबर 2020

प्रेरक प्रसंग - गौड़ीय हस्पताल

श्रील भक्ति सिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी ठाकुर प्रभुपाद जी गौड़ीय मठ को गौड़ीय हस्पताल भी कहा करते थे। वे कहा करते थे कि यह एक हस्पताल है। यहाँ पर डाक्टर भी हैं और रोगी भी। रोगी हैं क्रोध के, मोह के, कामना-वासना के, किसी में घमण्ड है, आदि। इस गौड़ीय हस्पताल में उनका अलग-अलग ढंग से इलाज किया जाता है।  जैसे किसी में कामना-वासना ज्यादा है तो उसे इस प्रकार से उत्साहित किया जाता है कि उसकी कामना बढ़े हरिनाम करने की, वैष्णव सेवा करने की, भक्ति के प्रचार की, भगवान की विभिन्न सेवायें करने की। उसके अन्दर बहुत सी कामनायें हैं, गुस्सा आता है, ठीक है, किन्तु उस गुस्से को अपने माता-पिता-भाई-बहिन पर न निकाल कर उस गुस्से को निकालें उन पर जो भगवान का अपमान करते हैं, उनके भक्तों का अपमान करते हैं।  


इस प्रकार से उसका इलाज किया जाता है।

या यूँं कह लीजिए कि उसको इतना व्यस्त कर देते हैं सेवायें देकर कि सेवायें करते-करते उसको जब हरिनाम का रसास्वादन होने लगता है, उस समय उसकी कमियाँं अपने आप भाग जाती हैं। 

जैसे सूर्य के उदित होने से अंधेरा भाग जाता है।
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