मंगलवार, 15 सितंबर 2020

श्रीमद् भगवद् गीता - 2

संसार में कई तरह के लोग होते हैं। परिवार में भी अलग-अलग तरह के लोग होते हैं। भाई-भाई की सोच में ही अन्तर होता है। एक भाई बोले -- भाई हम सभी एक ही परिवार के हैं, जो मेरा है, वो हम सब का ही है। तो मेरा-तेरा न करके हमारा बोला जाए। कोई-कोई सा भी है जो कह सकता है कि  भाई  मेरा भी तेरा ही है। किन्तु कोई ऐसा भी कह सकता है कि ठीक है हमारा आपस जो प्रेम है वो सब ठीक है किन्तु ये तेरा-मेरा ही चलेगा, जो तेरा है वो तेरा ही है और जो मेरा है वो मेरा ही है। लेकिन कई ऐसे दुष्ट भी होते हैं जो यह कहते हैं कि जो मेरा है वो तो मेरा है ही, जो तेरा है वो भी मेरा ही है। कई ऐसे भी होते हैं जो माता-पिता से सब कुछ लेकर उन्हें पूछते भी नहीं हैं।

भगवान तो भगवान हैं, वे केवल यह ही नहीं देखते कि कोई मेरे नाम का कितना जप कर रहा है, मेरे व्रत कितने कर रहा है, कितनी तीर्थ यात्रा कर रहा है,  मेरे ग्रन्थ पढ़ रहा है……वे तो हमारी व्यवहारिक ज़िन्दगी कैसी है, उसे भी देखते हैं। दुर्योधन भी भगवान श्रीकृष्ण से मिलते हैं और पाण्डव भी। किन्तु भगवान ने दुर्योधन का पक्ष नहीं लिया। युधिष्ठिर की यही सोच थी कि हम सब एक ही हैं, कोई बात नहीं अगर वे 100 हैं और हम 5 हैं, हैं तो हम सब मिलकर 105 ही। उनकी यही सोच है कि जो मेरा है वो तुम्हारा भी है। किन्तु दुर्योधन की सोच यह है कि मेरा तो मेरा है ही, तुम्हारा भी मेरा है। चाहे भगवान समझाने के लिए गये तो भी उसने कहा कि युद्ध के बिना मैं सुई के बराबार की ज़मीन भी देने वाला नहीं हूँ। 

अतः भगवान ने उनका साथ नहीं दिया।

शिशुपाल शालीग्राम जी की सेवा करता था, उसे ब्राह्मण सेवा में रुचि थी, किन्तु भगवान ने उसका साथ नहीं दिया। क्योंकि व्यवहारिक ज़िन्दगी ठीक नहीं थी उसकी। अतः परमार्थ जगत में व्यवहारिक ज़िन्दगी का भी बहुत महत्व होता है। भगवान के भक्त तो उनके भक्त ही होते हैं चाहे दिन हो या रात। सुबह-शाम भक्त ही हैं। भक्त कोई ऐसी क्रिया नहीं करेगा जिससे भगवान प्रसन्न न हों।

अनुकूल संतान कहीं भी रहे वो माता-पिता के अनुकूल ही रहेंगे। कहीं भी रहें अनुकूल सन्तान ऐसे ही काम करेगी जिससे उसके माता-पिता का नाम रौशन हो, अथवा जिसे सुनने से खुशी हो।

हमारी गीता में प्रथम श्लोक की व्याख्या में श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर जी ने लिखा कि किसान फसल के साथ उगने वाले खर-पतवार पर रहम नहीं करता, फसल को बचाता है। युद्ध के क्षेत्र में किसान भगवान है, पाण्डव (युधिष्ठिर आदि),…फसल के समान हैं,  युद्ध का मैदान एक प्रकार का खेत है, दुर्योधन खर-पतवार के समान है। अतः श्रीकृष्ण इस घास-पात् तो उखाड़ के बाहर कर देंगे। यह पहले श्लोक से ही इंगित हो जाता है।

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