गुरुवार, 10 सितंबर 2020

श्रीमद् भगवद् गीता -1

हम सभी सनातन धर्मी हैं और सनातन धर्म का एक मुख्य ग्रन्थ है श्रीमद् भगवद् गीता। 

श्रीमद् भगवद् गीत भक्त और भगवन के बीच की बातचीत है।  भगवान श्रीकृष्ण अपने भक्त अर्जुन के सवालों का जवाब दे रहे हैं। प्रश्न अर्जुन के हैं और जवाब श्रीकृष्ण के। चूंकि श्रीगीता भगवान के मुखारविन्द की वाणी है अतः हमें इसे सुनना चाहिये।

यह चर्चा हुई थी कुरुक्षेत्र में। यह चर्चा चली लगभग 45 मिनट। उस समय एक तरफ कौरवों की सेना है और दूसरी ओर पाण्डवों की। उस समय दिल्ली में परिवार के मुखिया धृतराष्ट्र बैठे युद्ध के समाचार के लिए उत्सुक, सुन रहे थे युद्ध का हाल-चाल। श्रीवेदव्यास मुनि जी ने युद्ध से पहले उनसे कहा था कि मैं आपको दिव्य नेत्र देता हूँ जिनसे आप यहीं बैठे-बैठे युद्ध को देख सकोगे। धृतराष्ट्र ने कहा कि जिन्हें खेलते हुए नहीं देखा, उन्हें मरते हुए क्या देखना। किन्तु, युद्ध के बारे में जानना तो चाहता हूँ कि वहाँ क्या-क्या हो रहा है? इसलिए आप संजय को दिव्य दृष्टि प्रदान कर दीजिए, यही मुझे सब कुछ बताता रहेगा। …………यहीं से श्रीगीता का संवाद प्रारम्भ होता है कि धृतराष्ट्र ने संजय से कहा कि हे संजय वो जो धर्म भूमि स्वरूप कुरुक्षेत्र है, वहाँ पर मेरे और पाण्डु पुत्र, तो युद्ध के लिए गये हैं, उन्होंने वहाँ पर क्या किया?

श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी जी बताते हैं कि धृतराष्ट्र की अपनी इच्छा थी कि युद्ध हो। भयंकर युद्ध हो।  वे इसलिए ऐसा चाहते थे, क्योंकि वे पुत्र-मोह में अन्धे हो चुके थे। वे समझते थे इतने बड़े-बड़े महारथि तो हमारी ओर हैं - पितामह भीष्म , गुरू द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, ……ये सभी तो हमारी ओर हैं, फिर हमारी संख्या भी ज्यादा है इसलिए मेरे पुत्रों का युद्ध में जीतना निश्चित है, अतः युद्ध हो जाना चाहिए। उनके हृदय में भेद-भाव था इसलिए उन्होंने पहले बोला मेरे पुत्र…………………उनके लिए तो बच्चे सब बराबर ही होने चाहिए थे, किन्तु उनके अन्दर भेद-बुद्धि है। 

और एक बात उनके मन में थी कि यह कुरुक्षेत्र देवताओं की यज्ञस्थली रहा है। स्थान का एक प्रभाव होता है कि वो हृदय परिवर्तन कर देता है। अतः उन्हें भय था कि कहीं मेरे बच्चों का मन ही पलट गया हो और वे भी पाण्डवों की तरह युद्ध के लिए असहमत हो जायें।

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