शनिवार, 15 अगस्त 2020

प्रेरक प्रसंग 4 - मनुष्य तो गल्तियों का पुतला है।

हमारे श्रील भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज जी को एक बार उनके किसी गुरूभाई ने पूछा --- महाराज! आप इतना प्रचार करते हैं,  इतने ज्यादा राज्यों में श्रीकृष्ण नाम के प्रचार के लिए जाते हैं, इतने सारे मठों का संचालन कैसे कर लेते हैं ?

अपने गुरू भाई का सम्मान करते हुए महाराज जी ने मजाक में कहा -  भाई! वैसे तो खेते में हल चलाने के लिए बैल चाहियें, किन्तु मैं बकरे - बकरियों से ही काम चला रहा हूँ। अर्थात् बहुत सारे योग व्यक्ति मेरे पास नहीं हैं, पर जो हैं उनसे ही काम चला रहा हूँ।

इस बात से हमें समझना चाहिए कि हमेशा ही हमें योग्य लोग मिलेंगे, ऐसा नहीं है।  जो हैं, उनसे ही काम चलाना चाहिए।

ऐसे ही एक अन्य बार कुछ ऐसा ही प्रश्न जब श्रील भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज जी से पूछा गया तो उन्होंने जवाब दिया था कि मान लीजिये कि आपके घर में मुड़े-तुड़े बर्तन हों और आपको भोजन बनाना हो तो कैसे बनाओगे? मुड़े-तुड़े बर्तन हों तो उसमें भोजन पकना असंभव सा ही होता है। अतः आप उसे ठोक-ठोक के जितना ठीक हो सकेगा, उसे करेंगे और खाना बनायेंगे। ठीक वैसे ही जो शिष्य हैं मेरे पास उन्हीं को ही हल्का-हल्का ठीक करके काम चला रहा हूँ।

अब हमारे लिए क्या शिक्षा है -- गल्तियाँ हो हर किसी से होती हैं। सारा संसार इंसानों से भरा है और मनुष्य तो गलती का पुतला है। अब इन्हीं को लेकर काम करना है, सेवा में लगाना है। तो श्रील महाराज जी उनमें गल्तियों को ना निकालकर उनमें गुण भरते थे। फिर उनसे काम लेते थे। शिष्यों को लगता था कि मैं इतना काम कर रहा हूँ, मेरे में कितने गुण हैं, आदि ……श्रील महाराज जी उसे एहसास नहीं होने देते थे कि तुम तो गल्तियों से भरे थे, मैंने तुम्हें ठोक-ठोक के ठीक किया है और काम में लगा रहा हूँ।  

मान लीजिए आपके पास एक कम्बल है अथवा कपड़ा है। उसमें बहुत से धागे बाहर निकले हुए हैं। अगर आप एक-एक धागा निकालते रहोगे तो एक दिन उस कपड़े का अथवा कम्बल का अस्तित्व ही खत्म हो जाएग। ऐसे ही जो सेवक आपके पास हैं, उनकी गल्तियाँ निकालते रहेंगे, उन्हें अपने से दूर करते रहेंगे तो आपके पास कोई रह नहीं जाएगा। और वैसे आप भी कमियों से भरे हैं।

अतः श्रील माधव महाराज जी यही बताना चाहते हैं कि गल्तियाँ तो सभी से होंगी, सभी गल्तियों से भरे हैं, दुनिया में कोई व्यक्ति ऐसा नहीं है जिसने अन्दर कोई खूबी न हो, कोई गुण न हों, अतः उस गुण को ही लो, और उन्हें उपयोग में लाओ। जब खूबियों को ही देखोगे तो कमियाँ अपने आप छिपने लगेंगी, हटने लगेंगी। व्यक्ति पूर्व में जितना चलेगा, पश्चिम उतना ही दूर होता जायेगा, उसके लिए विशेष प्रयास नहीं करना पड़ेगा।

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