सोमवार, 4 मई 2020

कुछ प्रश्न मासिक अशुद्धता को लेकर - 4

हमारी बहिनों के मन में कई बार मासिक धर्म को लेकर प्रश्न उठते हैं। ऐसे प्रश्न कई बार हमारी बहिनें हमें भेजती हैं कि उन दिनों में वे भजन कैसे करें……ऐसे ही कुछ प्रश्नों की चर्चा यहाँ पर की जा रही है --
----------

प्रश्न 4--- किसी स्त्री ने पूछा कि मन्दिर में मेरी सेवा लगी हुई है, मुझे रोज़ श्रीनृसिंह आरती गानी है,  तो जिन दिनों वह अपवित्र अवस्था में हैं, उन दिनों क्या वह आरती नहीं गा सकती ? 

उत्तर --  श्रीनृसिंह आरती तो गा सकते हैं, लेकिन मन्दिर में खड़े होकर नहीं गा सकते हैं। दशावतार स्तोत्र, श्रीनृसिंह आरती, श्रीनृसिंह मन्त्र, भगवान के स्तव, भगवान के कीर्तन सब कुछ गा सकते हैं । लेकिन अपवित्र अवस्था में स्त्रियां मन्दिर के अन्दर व मन्दिर के सामने  नहीं जा सकती .......

मन्दिर से सम्बन्धित जो नियम हैं उन्हें कहा जाता है -- अर्चन।

 हरिकथा सुनना, हरिकथा बोलना, हरिनाम संकीर्तन करना, इसे कहते हैं ---- भजन। 

अर्चन में वैदिक नियमों का पालन करना पड़ता है, लेकिन हरिनाम संकीर्तन में हमारे श्रीचैतन्य महाप्रभु जी ने, हमारे शास्त्रों ने, हम सब को सभी प्रकार के नियमों से मुक्त किया हुआ है। अर्चन में तमाम प्रकार के नियम पालन करने पड़ते हैं । जैसे कि अगर आप ब्राह्मण नहीं हैं तो आप मन्दिर में प्रवेश नहीं कर सकते हैं अथवा अगर आपकी दीक्षा नहीं हुई है, तो आप मन्दिर में प्रवेश नहीं कर सकते हैं। आप किसी भी जाति के हैं, किसी भी वर्ण के हैं, अगर आपने वैष्णव दीक्षा ले ली है तो आप मन्दिर में जा सकते हैं। वैष्णव दीक्षा के बाद जाति आदि का भेद-भाव नहीं रहता है। यहाँ तक कि अगर कोई व्यक्ति समर्थ है तो वो अन्यों को भी अधिकार दे सकता है, चाहे वो किसी भी वर्ण का हो, अथवा जाति का, अथवा आश्रम का।

 श्रीचैतन्य महाप्रभु जी ने इस बात को सपष्ट रूप से कहा है। चाहे ब्राह्मण, चाहे, शूद्र, चाहे नीच जाति, चाहे गृहस्थ, चाहे वामप्रस्थ, कोई भी हो, इससे कोई लेना-देना नहीं, क्योंकि जिसने श्रीकृष्ण का तत्त्व जान लिया है, भगवान् की अनुभूति प्राप्त कर ली है, वो  दूसरों को भी भगवान् की अनुभूति करवा सकता है, अन्यों को भी भगवान् की पूजा के सक्षम बना सकता है....... इसमें स्त्री-पुरुष, ऊँच-नीच, जाति-पाति किसी भी प्रकार का भेद-भाव नहीं रहता। 

मन्दिर में पूजा करने के लिए, ठाकुर जी की रसोई करने के लिये, वैदिक नियम यह है कि आपका उपनयन संस्कार होना चाहिए। अगर दीक्षा हो गई है तो आप मन्दिर के अन्दर जा सकते हैं किन्तु उसमें भी पवित्रता-अपवित्रता का ध्यान रखना पड़ता है। 


भजन तो कैसे भी, किसी भी अवस्था में कर सकते हैं, उसके लिए कोई नियम नहीं है। लेकिन अर्चन के लिए नियम हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें