मंगलवार, 5 मई 2020

कुछ प्रश्न मासिक अशुद्धता को लेकर - 5

हमारी बहिनों के मन में कई बार मासिक धर्म को लेकर प्रश्न उठते हैं। ऐसे प्रश्न कई बार हमारी बहिनें हमें भेजती हैं कि उन दिनों में वे भजन कैसे करें……ऐसे ही कुछ प्रश्नों की चर्चा यहाँ पर की जा रही है --
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प्रश्न 5कभी-कभी ऐसा होता है कि घर में कोई और सदस्य नहीं है, घर में अकेले हैं, किन्तु अपवित्र अवस्था है, तो क्या करें ? अथवा घर में कोई नहीं है तो क्या करें?

उत्तर -- जिनके लिए हमने कार्य करना है, उन श्रीहरि ने ही यह नियम बनाया है कि अपवित्र अवस्था में भोग नहीं लग सकता। तो आप भला क्या कर सकती हैं ?

उपरोक्त बताई गई स्थिति में अथवा जब आप भी घर पर नहीं हैं ऐसी स्थिति में घर में आलेख्य जो रखे हैं, उनका जो मूल मन्दिर है, चाहे वो किसी भी देश या राज्य में है, आरती के समय आप गुनगुना सकते हैं अथवा मानसिक चिन्तन कर सकते हैं कि वहाँ पर ठाकुर जी की आरती हो रही है, भोग लग रहा है....आदि। किन्तु अपवित्र अवस्था में भोग नहीं लगा सकते हैं। मन्दिर की सेवा नहीं कर सकते हैं।

ऐसी स्थिति भी हो सकती है कि बिमारी की अवस्था में स्नान नहीं कर सकते हैं या किसी कारण बार-बार बाथरूम जाना पड़ रहा है, तो ऐसे में आप टावल बाथ कर सकते हैं, धुले कपड़े पहन कर पूजा कर सकते हैं। 

अर्चन करते हुए , आरति के बाद, भोग लगाने के बाद हरे कृष्ण महामन्त्र का कीर्तन ज़रूर, करना चाहिए ।  महामन्त्र के कीर्तन से अगर हमारी सेवा में कहीं भी कोई भूल रह गई हो, तो सारी की सारी कमियों की भरपाई हो जाती है, हरे कृष्ण महामन्त्र से। 


हमारे साधु महाराज कहा करते थे कि महामन्त्र कम से कम तीन बार तो करना ही चाहिए।

वैदिक नियमों के अनुसार पवित्रता व अपवत्रिता, समय व अमय, इन सबका ध्यान रखना पड़ता है। जैसे कोई सोचे कि मंगल आरती करनी है, तो वह मंगल आरती ब्रह्म-मुहुर्त के हिसाब से व सूर्योदय के हिसाब से करेगा,  जब मर्ज़ी मैं मंगल आरती कर लूँ...... ऐसा नहीं होता है। 
संध्या आरती सूर्यास्त को देखकर की जाती है। जब मर्ज़ी नहीं हो सकती।  ऐसा नहीं होता है।

हमारे महात्माओं ने गृहस्थी को बहुत ज्यादा नियम से नहीं बाँधते हैं, क्योंकि हर घर के अपने नियम होते हैं। ब्रह्म मुहुर्त में मंगला आरती नहीं भी कर सकते हैं,  तो महात्मा कहते हैं कि चलो करो तो सही। इसीलिये घर में विग्रह न रखकर उनके आलेख्य (फोटोग्राफ) रखने चाहिए। उनकी भी महिमा उतनी ही है, बस उसमें इतनी बात है कि अगर आप समय पर भोग नहीं लगा सके, आरती नहीं कर सके तो अपराध नहीं होता क्योंकि उन विग्रहों का मूल रूप जहाँ पर है, वहाँ पर समय पर अर्चन वआरती हो रही है।

श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज, श्रील भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज, बहुत से ज्यादा नियमों को नहीं बाँधते थे । गृहस्थियों को कि इतने समय पर ही आरती करनी पड़ेगी, किन्तु संस्था में जो मन्दिर हैं, उनमें आरति का समय होता है। इसी प्रकार भगवान के अर्चन में भगवान को स्नान कराना, भोग लगाना, उसका समय होता है। यह सब अर्चन के नियम हैं। कोई अगर मठ-मन्दिर के नियमों के अनुसार घर में आरति व पूजा कर सके तो बहुत अच्छा है ।

मन्दिर में जाने से पहले स्नान, 12 तिलक लगाना, स्नान के बाद अशुद्ध होकर नहीं जाना, आदि सब अर्चन के नियम हैं।


किन्तु हरिनाम करने में कोई नियम नहीं हैं। दिन में, रात को, माला पर, बिना माला के, स्नानागार में, बाथरूम जाने के बाद भी आप हरिनाम कर सकते हैं। कोई नियम नहीं हैं।

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