शुक्रवार, 5 अक्तूबर 2018

जब श्रील प्रभुपाद ने भक्तों की प्राण-रक्षा की।

जगद्गुरु श्रील भक्ति सिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी ठाकुर प्रभुपाद जी सनातन धर्म व शुद्ध भक्ति के प्रचार के लिये अपने प्रचारकों को विभिन्न स्थानोंं पर भेजते थे।

ऐसे में एक बार आपने श्रीभक्ति सुधीर याचक महाराज, श्रीराधारमण ब्रह्मचारी, श्रीसत्यगोविन्द ब्रह्मचारी को ब्रह्म देश (म्यानमार) में प्रचार के लिये जाने का आदेश दिया। आपने उनका जल-जहाज का टिकट भी बनवा दिया।

निर्धारित दिन तीनों भक्तों ने बड़े ही उत्साह के साथ श्रील प्रभुपाद जी को प्रणाम किया व जाने की अनुमति माँगी।

श्रील प्रभुपाद ने बड़े ही गम्भीर स्वर में कहा -- ब्रह्म देश में प्रचार के लिये अभी नहीं जा सकते।

तीनों ने एक ही स्वर में 'जी, अच्छा' कहा व कमरे में लौट गये। किन्तु मन में विचार उठा कि क्या कारण हुआ कि श्रील प्रभुपाद जी ने यात्रा का टिकट बनवाकर, यात्रा वाले दिन, जाने को मना कर दिया?

उसी दिन शाम के समय श्रील प्रभुपाद जी ने आप तीनोंं के साथ-साथ अन्य मठवासियों को अपने कमरे में बुलाया व कहा -- सब बड़े ही ध्यान से खबरें सुनें।

रेडियो में शाम के संवाद में कहा -- आज दिन में इस समय पर इस नम्बर का जहाज, हावड़ा बाबूघाट से ब्रह्म-देश जाने के समय मध्य समुद्र में सम्पूर्ण डूब गया। इस घटना से एक भी व्यक्ति जीवित नहीं बचा।

यह संवाद सुनकर श्रील प्रभुपाद जी ने कहा -- राधारमण! आज इसी जहाज में तुम सब जाते तो कैसा होता?

किसी के पास कोई जवाब नहीं था।

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