रविवार, 14 अक्तूबर 2018

जब शिवजी महाराज ने आपको सद्गुरु के पास भेजा।

जगद्गुरु श्रील भक्ति सिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी ठाकुर 'प्रभुपाद' जी के शिष्य श्रील भक्ति कुसुम श्रमण गोस्वामी महाराज जी ने 1925 में श्रील प्रभुपाद जी का आश्रय लिया था।

एक समय की बात है, पश्चिम बंगाल के 24 परगना ज़िला के अन्तर्गत रहने वाले एक पति-पत्नी की तीव्र इच्छा जागी कि बहुत समय संसार-संसार कर लिया, अब सद्गुरु का आश्रय कर हरि-भजन किया जाय।
उन्होंने सद्गुरु की खोज करनी प्रारम्भ की। भारत के बहुत से स्थानों पर भी घूमे, यहाँं तक कि श्रीधाम वृन्दावन भी गये किन्तु उन्हें कोई सफलता हाथ नहीं लगी।

घूमते-घूमते, खोजते - खोजते वे श्रीचन्द्रशेखर शिवजी के मन्दिर में एक दिन आये। वहाँ उन्हें बड़ा अच्छा लगा और कुछ दिन वहीं ठहरने का मन बनाया। श्रीचन्द्रशेख शिवजी से अपने हृदय की प्रार्थना की व उनके शरणागत हुये। वैष्णव अग्रागण्य शिव जी महाराज उनकी सरलता व शरणागति से प्रसन्न हुए व तीसरे दिन उनसे कहा -- तुम श्रीधाम मायापुर में जाओ। वहाँ श्रीचैतन्य मठ में जाना। वहाँ श्रीमठ के आचार्य श्रीमद् भक्ति कुसुम श्रमण महाराज हैं, वही आपके गुरू होंगे।
यह आदेश प्राप्त कर वो पति-पत्नी दोनों श्रीधाम मायापुर में आये, व श्रील महाराज के दर्शन कर कृतार्थ हुए। उनसे हरिनाम दीक्षा लेकर पति-पत्नी दोनों ने अपना जीवन सार्थक किया।

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