गुरुवार, 14 दिसंबर 2017

जब भगवान ने रजक को सुगति प्रदान की

अक्रूर जी के रथ पर सवार होकर श्रीबलराम व श्रीकृष्ण जब मथुरा पहुँचे तो सबसे पहले प्रतीक्षा कर रहे श्रीनन्द महाराज व अन्य गोपों से मिले। श्रीकृष्ण से विदा लेते समय श्रीअक्रूर ने जब उन्हें अपने घर पर आने के लिये आमन्त्रण दिया तो श्रीकृष्ण ने कहा कि वे कंस के वध के पश्चात ही उनके घर आयेंगे। उसके पश्चात अक्रूर ने कंस को श्रीराम-कृष्ण के आने का संदेश दिया।

जिस समय श्रीकृष्ण गोपोंं के साथ विचित्र शोभायुक्त मथुरा नगर को निहार रहे थे, उस समय वहाँ की स्त्रियों में से कुछ ने तो अपने घर के
दरवाज़े पर खड़े होकर और कुछ ने अट्टालिकाओं के ऊपर से श्रीबलराम-श्रीकृष्ण के दर्शन किये। बहुत दिनों से उनके मन में व्यथा थी कि वे श्रीराम-कृष्ण के दर्शनों से वंचित रह गईंं। स्त्रियाँ अट्टालिकाओं के ऊपर से श्रीराम-श्रीकृष्ण पर पुष्प बरसाने लगीं और ब्राह्मणों ने दही, चावल, गन्ध और पुष्प मालाओं से उनकी पूजा की।

श्रीकृष्ण ने कंस के धोबी को अपने नज़दीक देखकर, उससे बढ़िया-बढ़िया वस्त्र देने के लिये प्रार्थना की। धोबी ने श्रीकृष्ण और श्रीबलराम को
साधारण मनुष्य एवं कंस राजा की प्रजा मात्र समझा और श्रीकृष्ण-बलराम को कंस के वस्त्रों के उचित अधिकारी न जान अश्लील वाक्यों से श्रीकृष्ण का तिरस्कार तो किया ही साथ ही कपड़े देने से भी इन्कार कर दिया। यह सुनकर श्रीकृष्ण ने क्रोधित होकर एक थप्पड़ से आत्मप्रशंसा परायण उस धोबी का सिर धड़ से अलग कर दिया। श्रीकृष्ण की इस लीला द्वारा कर्म-जड़ स्मृतियों का विचार खण्डित हुआ है। 

मोटी बुद्धि वाले जड़-कर्म स्मार्ति व्यक्तियों में श्रीकृष्ण के परमत्व
सम्बन्धित ज्ञान का अभाव होता है इसीलिये वे श्रीकृष्ण के कार्यों में भी अच्छे-बुरे का विचार करते हैं। जिससे वे आत्यन्तिक मंगल से वन्चित हो जाते हैं।  श्रीकृष्ण को अपने अधीन शक्तियों का अपनी इच्छा के अनुसार व्यवहार करने का अधिकार है। 

जिनकी ऐसी धारणा नहीं है कि श्रीकृष्ण द्वारा उस शक्ति एवं शक्ति के अंश जीव का अपनी इच्छा द्वारा प्रयोग जीव के मंगल के लिये ही होता है, उन्हें भगवद्-सम्बन्धी कुछ भी ज्ञान नहीं है। 

तात्विक रूप से यदि विचार किया जाय तो मालूम पड़ेगा कि कंस, कंस के वस्त्र व धोबी की तमाम वस्तुओं के स्वतः सिद्ध मालिक श्रीकृष्ण हैं। अतः तमाम वस्तुओंं पर श्रीकृष्ण का ही अधिकार है और किसी का नहीं। स्थूल
रूप से धोबी की हत्या करना अन्याय दिखने पर भी वास्तव में अन्याय नहीं है तथा श्रीकृष्ण के हाथों मरने पर जो सौभाग्य का उदय हुआ वह कल्पनातीत है।

श्रीहरि का एक विशेष गुण है --- हतारिसुगतिदायकत्व -- अर्थात् भगवान श्रीहरि असुरों को मार कर भी उन्हें सुगति प्रदान करते हैं। श्रीकृष्ण एवं उनके भक्तों की कृपा के बिना कर्मनिष्ठ बुद्धि द्वारा ये सब तत्व समझ में आने वाला नहीं है।

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