गुरुवार, 5 अक्तूबर 2017

पवित्र कार्तिक महीने में -- वृज दर्शन -- अम्बरीश टीला

चक्र तीर्थ से लगभग 70 फुट ऊँचाई पर एक टीला है, जो कि अम्बरीश टीला कहलाता है।

ऐसा कहा जाता है कि इस स्थान पर ही भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र को दुर्वासाजी के प्रति संचालित किया था व अपने भक्त अम्बरीश का महात्म्य प्रचारित किया था।

भगवान श्रीकृष्ण की आराधना करने की इच्छा से अम्बरीश महाराज ने मथुरा मण्डल में आकर सम्वत्सर (एक वर्ष) तक त्रिरात्र उपवास करके द्वादशी उपवास (एकादशी उपवास) किया था। कार्तिक मास की आखरी एकादशी उपवास के अगले दिन अर्थात् द्वादशी को यमुना में स्नान करके मधुवन में श्रीहरि का अर्चन करने तथा साधुअ-ब्राह्मणों की सेवा करने के बाद जब अम्बरीश महाराज पारण (व्रत पूर्ण) करने जा ही रहे थे कि उसी समय उनके यहाँ दुर्वासा जी अतिथि रूप से पधारे।
दुर्वासाजी का स्वागत करने के बाद अम्बरीश महाराजजी ने दुर्वासाजी को भोजन के लिये प्रार्थना की तो उन्होंने अम्बरीश महाराज जी की प्रार्थना को स्वीकार कर लिया तथा कहा कि मैं थोड़ा मध्याह्णिक का आऊँ, तब भोजन करूँगा।

इतना कहकर वे यमुना की ओर चल दिये और कालिन्दी के पवित्र जल में ध्यान मग्न हो गये। इधर व्रत के पारण का समय गुज़रनेलगा।

अम्बरीश महाराजजी चिन्तित हो गये और सोचने लगे कि द्वादशी के दिन ठीक समय पर पारण नहीं करने से व्रत-वैगुण्य दोष होगा। पारण करने के लिये निमन्त्रित ब्राह्मण को भोजन न करवाकर यदि स्वयं भोजन लिया जाय तो ब्राह्मण लंंघन रूपी अपराध हो जाएगा।

धर्म संकट के उपस्थित होने पर अम्बरीश महाराजजी ने ब्राह्मणों के साथ
विचार-विमर्श किया। अन्त में यह निर्णय लिया गया कि जल पीकर व्रत-सम्पन्न किया जाय।

अतः अम्बरीश महाराजजी ने जल-पान करके व्रत का पारण किया। किन्तु दुर्वासा ॠषि ने अपने बुद्धि-योग के द्वारा वहीं जान लिया कि अम्बरीशजी ने कुछ ग्रहण कर लिया है अतः वे क्रोधित हो उठे और उन्होंने अम्बरीश महाराज को मारने के लिये एक राक्षसी छोड़ी।

जैसे ही दुर्वासा जी ने कृत्या छोड़ी, ठीक उसी समय भगवान श्रीहरि का अदेश प्राप्त करके सुदर्शन चक्र ने तत्क्षण उसे भस्म कर दिया। 

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