शुक्रवार, 29 सितंबर 2017

पवित्र कार्तिक महीने में याद करने के लिये प्रसंग/लीला

त्रिकूट पर्वत के जंगलों में जहाँ देवताओं के अनेक बगीचे थे, घाटियां थीं, झीलें थीं, हरे-भरे वृक्ष थे, फूलों से भरे सरोवर थे, वहाँ एक हाथी रहता था जो बहुत बलशाली था। उससे वन के सभी पशु डरते थे। जब वह अपनी हथनियों के साथ चलता था तो अन्य हाथी, बाघ, शेर, सर्प, भालु आदि सभी दूर भाग जाते थे। उसको अपनी ताकत का बड़ा घमण्ड था, वो जंगल में रास्ता देखकर नहीं चलता था, सामने जो भी पेड़-झाड़ी आता, उसे रौंदते हुये चलता था। वह हाथियों का राजा, गजपति हमेशा झुण्ड में ही चलता था। 
एक बार गजपति गजेन्द्र को प्यास लगी। वह अपने साथियों के साथ एक विशाल सरोवर के तट पर आया और पानी पीने के लिये सरोवरे में घुस गया। वह वहाँ नहाने लगा और पानी पीने लगा। उसके परिवार ने भी स्नान किया और जल में खेले।  सभी जब जल 
से बाहर जाने लगे तो अचानक एक घड़ियाल ने हाथी पर हमला कर दिया। उसने पानी के अन्दर रहते हुये हाथी का पैर अपने मुँह में जकड़ लिया।
गजेन्द्र ताकतवर था, उसने झटका मार के अपने आप को छुड़ाने की कोशिश की।  उसके साथियोंं ने भी उसको बचाने की कोशिश की परन्तु सफल नहीं हुये। सारे हाथी पानी से बाहर आ गये। गजेन्द्र अकेला ही मगरमच्छ से जूझता रहा। काफी समय हो जाने पर एक-एक करके सारे 
हाथी वहाँ से जाने लगे। गजेन्द्र अकेला पड़ गया। साथियों के चले जाने पर तथा अपनी बहुत कोशिशों के बाद भी अपने आप को मगरमच्छ के चंगुल से न बचा पाने के कारण गजेन्द्र हताश हो गया। अपने आप को मौत के मुँह में जाता देख लाचार गजेन्द्र को पिछले जन्म के भजन के प्रभाव से भगवान का स्मरण हो आया। उसे वो मन्त्र याद आ गये जिनसे वो पिछले जनम में भगवान की स्तुति करता था। 

मन ही मन उस स्तुति को याद करते हुये गजेन्द्र ने अपने आप को पूरी तरह से भगवान के चरणों में समर्पित कर दिया। समर्पण के प्रभाव से शरणागत वत्सल भगवान तुरन्त वहाँ पर प्रकट हो गये और उन्होंने अपने सुदर्शन चक्र से उस ग्राह का सर धड़ से अलग कर दिया और अपने गज को बचा लिया। 

अखिल भारतीय श्रीचैतन्य गौड़ीय मठ के प्रधानाचार्य श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराजजी कहते हैं की गजेन्द्र की तरह ये  प्राणी भी माया के चंगुल से छूटने की कितनी भी कोशिश करेगा, वो सब व्यर्थ ही 
जायेंगी। एकमात्र भगवान के प्रति शरणागति ही जीव को माया के चँगुल से बचा सकती है। इस प्रसंग को सुनाते हुये महाराजश्री एक और बात बताते हैं की भगवान प्राणी की दुनियावी विद्या, उसकी सुन्दरता, उसकी जाति या उसके धन-दौलत की ओर ध्यान नहीं देते। वे केवलमात्र समर्पण को ही देखते हैं। 

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