मंगलवार, 10 अक्तूबर 2017

पवित्र कार्तिक महीने में -- वृज दर्शन -- वृन्दावन देवी / कामेश्वर शिव / धर्म कुण्ड

वृन्दावन देवी -- औरंगज़ेब के राजत्व काल में जब हिन्दु धर्म पर विपत्ति और हिन्दुओं के मंदिरों पर आक्रमण हुआ तब श्रील रूप गोस्वामी जी द्वारा सेवित विग्रह श्रीगोविन्द जी, श्रील मधु पण्डित जी के सेवित विग्रह श्रीगोपीनाथ जी और श्रील सनातन गोस्वामी जी के सेवित श्रीमदन मोहन जी के विग्रह सेवकों को सेवा प्रदान करने के लिये पहले भरतपुर राजा के राज्य में  आये परन्तु बाद में विपत्ति के बहाने से वहाँ से जयपुर चले गये।

जयपुर महाराज की कन्या के प्रेम के वशीभूत होकर श्रीमदन मोहन जी करोली में चले गये।
अभी भी जयपुर में श्रीराधा गोविन्दजी, श्रीराधा गोपीनाथजी एवं करोली में मदनमोहनजी विराजित हैं। श्रीविग्रहों के भरतपुर में आने पर काम्यवन में उनके लिये तीन मन्दिर निर्मित हुये।

श्रीगोविन्द देवजी के मन्दिर के एक प्रकोष्ठ में वृन्दादेवी पृथक रूप से विराजित हैं।

वहाँ के पण्डा लोग कहते हैं कि जब श्रीगोविन्दजी, श्रीगोपीनाथजी, श्रीमदनमोहन्जी काम्यवन से जयपुर गये थे, तब वृन्दादेवी ने वहाँ जाने की इच्छा नहींं की। इसीलिये काम्यवन मन्दिर में श्रीगोविन्दजी, श्रीगोपीनाथजी, श्रीमदनमोहनजी के प्रतिभु विग्रह हैं, किन्तु वृन्दादेवी जी का मूल विग्रह है।
श्रीकामेश्वर शिव -- कहा जाता है कि व्रजनाभजी द्वारा प्रतिष्ठित श्रीकामेश्वर शिवजी के स्थान पर व्यक्ति जो कामना करता है वह पूरी हो जाती है। मंगलाकंक्षी व्यक्ति कामेश्वर शिवजी से राधाकृष्णजी के पादपद्मों की अहैतुकि भक्तो को छोड़ कर और कुछ भी प्रार्थना नहीं करते।
धर्म कुण्ड -- भगवान नारायण धर्म रूप से यहाँ विराजित हैं।

वृजवासी कहते हैं कि युधिष्ठिर महाराज जी के पिता धर्मराजजी ने यहीं पर बक और यक्ष का रूप धारण कर प्रश्न किये थे एवं युधिष्ठिर महाराजजी द्वारा यथोधित उत्तर देने पर उनके भाई जीवित हुये थे।

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