सोमवार, 28 अगस्त 2017

क्यों ललिता सखी सारस्वत गौड़ीय वैष्णवों के लिए महत्वपूर्ण हैं?

श्रीवृज मण्डल में ऊँचा गाँव नामक स्थान है जो कि बरसाने के वायुकोण में अवस्थित है। यह श्रीमती ललिता सखी का स्थान है।

श्रील भक्ति विनोद ठाकुरजी ने ललिता सखी की अयोग़्य किंकरी के रूप में अपना परिचय दिया है। 

महा भाव-चिन्तामणि श्रीमती राधारानीजी का कायव्यूह स्वरूप ललितादि सखियां हैं। 

ललिता, विशाखा, चित्रा, इन्दुलेखा, चम्पकलता, रंगदेवी, तुंगविद्या एवं सुदेवी -- इन आठ प्रियतम सखियों में ललिता सखी प्रधाना हैं। 
श्रीमती ललिता सखी के आनुगत्यगणों में श्रीमती रूप मन्जरी श्रेष्ठा हैं और श्रीरूपानुग श्रेष्ठ हैं -- श्रीभक्ति विनोद ठाकुर। श्रील भक्ति सिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी ठाकुरजी ने स्वयं को रूपानुग कहकर अपना परिचय प्रदान करते हुए रूपानुग भक्ति प्रदान की है, इसीलिए ललिता देवी का स्थान सारस्वत गौड़िय वैष्णवों का प्राणस्वरूप है। 

राधाकुण्ड के जिस श्रीस्वानन्द कुन्ज में श्रील भक्ति विनोद ठाकुर और श्रील सरस्वती गोस्वामी ठाकुर जी ने भजन का आदर्श दिखाया था, वहीं
ललिता सखी का कुंज है। 

श्रीब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार गोलोक रासमण्डल में श्रीमती राधाजी के रोम छिद्रों से ललिता आदि गोपियों का आविर्भाव हुआ है।

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