मंगलवार, 22 अगस्त 2017

मन्दिर में झाड़ू देने का फल

श्रीनृसिं पुराण के 33वें अध्याय में वर्णन आता है कि ए बार राजा जयध्वज ने श्रीभृगु मुनि को पूछा  -- भगवान के मन्दिर में जो झाड़ू देता है वह पुरुष किस पुण्य को प्राप्त करता है?

राजा के इस प्रकार पूछने पर ॠषि भृगु मुनि ने अपने स्थान पर मार्कण्डेयजी को उतर देने के लिए कहा। श्रीभृगु मुनि की प्रेरणा से मुनिवर मार्कण्डेयजी ने राजा पर उनकी हरिभक्ति से प्रसन्न होकर कहा -- पाण्डुकुल नन्दन राजकुमार! जो भगवान के मन्दिर में नित्य झाड़ू लगाता है, वह सब पापों से मुक्त होकर श्रीविष्णुलोक में जाता है तथा हमेशा आनन्दित रहता है।
कृष्णनाम साक्षात् मृतसन्जीवनी
सत्यं ब्रवीमि ते शुभो गोपनीयमिदं मम।
मृत्युसंजीवनी नाम कृष्णाख्यमवधारय॥
(श्रीहरि भक्ति विलास 11/50)

अर्थात् भगवान ने कहा - हे शिव! आज आपको एक गोपनीय कथा कहता हूँ। मेरा 'कृष्ण' नाम, साक्षात् मृतसंजीवनी है। इस नाम का जप करने से प्राणी, मृत्यु अथवा संसार से उद्धार पाकर, अनायास ही मुझे प्राप्त होता है।

भगवान श्रीहरि के अनेक नाम हैं, लेकिन 'कृष्ण' नाम सर्वश्रेष्ठ है।
कृष्ण नाम्नः परं नाम न भूतं न भविष्यति।
सर्वेभ्यश्च परं नाम कृष्णति वैदिका विदुः॥
(श्रीब्रह्मवैवर्त पुराण)

अर्थात्

भगवान के जितने नाम हैं, उनमें 'कृष्ण' नाम सर्वश्रेष्ठ है। श्रीकृष्ण नाम की अपेक्षा और कोई श्रेष्ठ नाम नहीं है एवं न ही होगा। वेदों का ज्ञान रखने वाले सभी भक्त इस रहस्य को जानते हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें