मंगलवार, 20 दिसंबर 2016

सनातन धर्म में बुत पूजा नहीं होती

अखिल भारतीय श्रीचैतन्य गौड़ीय मठ के संस्थापक आचार्य श्रील भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज 'विष्णुपाद' जी एक बार भगवद्-वाणी का प्रचार करने के लिये बंगाल देश गये। वहाँ पर एक विराट धर्म सभा का आयोजन हुआ।

श्रील महाराजजी ने प्रवचन को लगभग आधा घंटा ही हुआ था कि सभा के बीच में एक व्यक्ति उठा व बोला - जो यह आप बुत-परस्तवाद अथवा मूर्ति पूजा की बात कर रहे हैं, उसकी क्या युक्ति है?

श्रील महाराजजी ने अपना प्रवचन बीच में ही रोक दिया। इससे पहले की कोई अन्य उस व्यक्ति को टोके, महाराजजी ने कहा - बहुत अच्छा प्रश्न है। 

महाराजजी ने उस व्यक्ति से पूछा - महाशय! आप भगवान अथवा खुदा को मानते हैं?

व्यक्ति - निश्चय ही मानता हूँ।

महाराजजी - भगवान की अथवा खुदा की कोई शक्ति है?

व्यक्ति - भगवान सर्वशक्तिमान है।
महाराजजी उनका उत्तर सुनकर मुस्कुराये और बोले कि आपने अपने प्रश्न का उत्तर स्वयं की दे दिया।

'सर्वशक्तिमान' शब्द का गम्भीर तात्पर्य को न समझने के कारण वो व्यक्ति समझ नहीं पाया कि उसके प्रश्न का उत्तर कैसे हो गया?

उसकी चुप्पी देखकर महाराजजी बोले - कपड़े सिलने की एक छोटी सुई के छेद में से (जिसके अन्दर 90 नम्बर का धागा भी सुगमता से न घुस पाता हो) क्या आपका खुदा इस इलाके के सबसे बड़े हाथी को इस पार से उस पार तथा उस पार से इस पार ला सकता है या नहीं? बशर्ते कि हाथी के शरीर में
ज़रा सा भी ज़ख्म न होने पाये, उसका एक भी बाल न टूटे।

उस व्यक्ति को चुप देखकर महाराजजी ने फिर कहना शुरु  किया - आपके खुदा में कितनी शक्ति है, मैं नहीं जानता, लेकिन जिनको मैं भगवान मानता हूँ, उनके लिये सब कुछ सम्भव है।

कर्तुमकर्तुम्न्यथाकर्तुंं यः समर्थः स एक ईश्वरः।
भगवान सर्वसमर्थ हैं। वे सब कुछ कर सकते हैं। वे किये हुये को उल्टा सकते हैं, उल्टे लिये हुये को पलट सकते हैं। उन सर्वशक्तिमान के लिये कुछ भी असम्भव नहीं है। सर्वशक्तिमान सब कुछ करने में समर्थ हैं। हम जो जो शक्ति भगवान में स्थापित करेंगे, उस उस शक्ति से ही भगवान युक्त होंंगे अर्थात् सिर्फ वही-वही शक्ति यदि भगवान में होगी तो ऐसे में उन्हें सर्वशक्तिमान नहीं कह सकते। 

वास्तविकता यह है कि हमारी कल्पना के अन्दर और बाहर समस्त प्रकार  की शक्ति वाले तत्त्व को ही सर्वशक्तिमान कह सकते हैं। और जब भगवान को सर्वशक्तिमान मान लिया तो वे यह कार्य कर सकते हैं, और यह कार्य नहीं कर सकते हैं, ऐसी बात कहने का हमारा अधिकार ही नहीं है।

सर्वशक्तिमान भगवान अपने भक्त की इच्छा को पूरा करने के लिये जिस
किसी मुर्ति को धारण करके अर्थात् किसी भी स्वरुप को धारण करके, किसी भी स्थान पर आ सकते हैं। यदि हम कहें कि वे ऐसा नहीं कर सकते तो उन्हें सर्व-शक्तिमान कहना निरर्थक होगा।

मनुष्य जब कर्ता रूप से मिट्टी से, धातु से, जो निर्माण करता है, वह बुत होता है। सनातन धर्म में बुत पूजा की व्यवस्था नहीं है। सनातन धर्म में
'श्रीविग्रह' की आराधना करते हैं। भक्त के प्रेम में वशीभूत होकर सर्वशक्तिमान भगवान जो विशेष मूर्ति ग्रहण करते हैं, उसे श्रीविग्रह कहते हैं। श्रीविग्रह और बुत में ज़मीन - आसमान का अन्तर होता है। बुत पंचमहाभूत का बना होता है जब्कि विग्रह चेतन होता है, सच्चिदानन्द होता है।

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