- दूसरे के स्वभाव की निन्दा न करके, अपना ही सुधार करना।
- निर्गुण-वस्तु अर्थात् भगवान के दर्शन करने के लिए, एकमात्र कानों को छोड़कर, और कोई उपाय नहीं है।
- खुशामद करने वाला गुरु या प्रचारक नहीं होता।
- सरलता का दूसरा नाम ही वैष्णवता है।
- आचार-रहित प्रचार, कर्म के अन्तर्गत है।
- माया के जाल से, एक भी प्राणी की रक्षा कर सको, ऐसा परोपकार सर्वश्रेष्ठ है।
-- श्रील भक्ति सिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी ठाकुर 'प्रभुपाद'।
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