
एक बार गजपति गजेन्द्र को प्यास लगी। वह अपने साथियों के साथ एक विशाल सरोवर के तट पर आया और पानी पीने के लिये सरोवरे में घुस गया। वह वहाँ नहाने लगा और पानी पीने लगा। उसके परिवार ने भी स्नान किया और जल में खेले। सभी जब जल से बाहर जाने लगे तो अचानक एक घड़ियाल ने हाथी पर हमला कर दिया। उसने पानी के अन्दर रहते हुये हाथी का पैर अपने मुँह में जकड़ लिया।
गजेन्द्र ताकतवर था, उसने झटका मार के अपने आप को छुड़ाने की कोशिश की। उसके साथियोंं ने भी उसको बचाने की कोशिश की परन्तु सफल नहीं हुये। सारे हाथी पानी से बाहर आ गये। गजेन्द्र अकेला ही मगरमच्छ से जूझता रहा। काफी समय हो जाने पर एक-एक करके सारे
हाथी वहाँ से जाने लगे। गजेन्द्र अकेला पड़ गया। साथियों के चले जाने पर तथा अपनी बहुत कोशिशों के बाद भी अपने आप को मगरमच्छ के चंगुल से न बचा पाने के कारण गजेन्द्र हताश हो गया। अपने आप को मौत के मुँह में जाता देख लाचार गजेन्द्र को पिछले जन्म के भजन के प्रभाव से भगवान का स्मरण हो आया। उसे वो मन्त्र याद आ गये जिनसे वो पिछले जनम में भगवान की स्तुति करता था।
हाथी वहाँ से जाने लगे। गजेन्द्र अकेला पड़ गया। साथियों के चले जाने पर तथा अपनी बहुत कोशिशों के बाद भी अपने आप को मगरमच्छ के चंगुल से न बचा पाने के कारण गजेन्द्र हताश हो गया। अपने आप को मौत के मुँह में जाता देख लाचार गजेन्द्र को पिछले जन्म के भजन के प्रभाव से भगवान का स्मरण हो आया। उसे वो मन्त्र याद आ गये जिनसे वो पिछले जनम में भगवान की स्तुति करता था।


जायेंगी। एकमात्र भगवान के प्रति शरणागति ही जीव को माया के चँगुल से बचा सकती है। इस प्रसंग को सुनाते हुये महाराजश्री एक और बात बताते हैं की भगवान प्राणी की दुनियावी विद्या, उसकी सुन्दरता, उसकी जाति या उसके धन-दौलत की ओर ध्यान नहीं देते। वे केवलमात्र समर्पण को ही देखते हैं।
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